महंगाई की मार

वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी लगाने के पीछे तर्क रहा है कि इससे वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें घटेंगी। मगर इसके शुरुआती चरण में ही महंगाई पिछले पांच महीने के ऊंचे स्तर पर पहुंच गई। हालांकि अनेक आम उपभोक्ता वस्तुओं पर करों की दर काफी कम रखी गई है, इसके बावजूद खुदरा बाजार में वस्तुओं की कीमतें बढ़ी हैं, तो इसकी वजहों पर ध्यान देने की जरूरत है। कहा जा रहा है कि जीएसटी का शुरुआती चरण होने की वजह से बहुत सारे खुदरा कारोबारी भ्रम में हैं और वे अपने ढंग से वस्तुओं की कीमतें बढ़ा कर बेच रहे हैं। पर थोक मूल्य सूचकांक में महंगाई की दर बढ़ कर 3.36 पहुंच गई, तो यह केवल भ्रम के चलते नहीं हुआ है। रोजमर्रा इस्तेमाल होने वाले फलों और सब्जियों की कीमतें बढ़ी हैं, खानपान, तैयार भोजन पर करों की दोहरी व्यवस्था के चलते भी महंगाई बढ़ी है। ऐसे में यह सवाल स्वाभाविक है कि केंद्रीय कर प्रणाली लागू होने के बाद भी अगर महंगाई पर काबू नहीं पाया जा पा रहा, तो इससे पार पाने के क्या उपाय होने चाहिए।

वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी लगाने के पीछे तर्क रहा है कि इससे वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें घटेंगी। मगर इसके शुरुआती चरण में ही महंगाई पिछले पांच महीने के ऊंचे स्तर पर पहुंच गई। हालांकि अनेक आम उपभोक्ता वस्तुओं पर करों की दर काफी कम रखी गई है, इसके बावजूद खुदरा बाजार में वस्तुओं की कीमतें बढ़ी हैं, तो इसकी वजहों पर ध्यान देने की जरूरत है। कहा जा रहा है कि जीएसटी का शुरुआती चरण होने की वजह से बहुत सारे खुदरा कारोबारी भ्रम में हैं और वे अपने ढंग से वस्तुओं की कीमतें बढ़ा कर बेच रहे हैं। पर थोक मूल्य सूचकांक में महंगाई की दर बढ़ कर 3.36 पहुंच गई, तो यह केवल भ्रम के चलते नहीं हुआ है। रोजमर्रा इस्तेमाल होने वाले फलों और सब्जियों की कीमतें बढ़ी हैं, खानपान, तैयार भोजन पर करों की दोहरी व्यवस्था के चलते भी महंगाई बढ़ी है। ऐसे में यह सवाल स्वाभाविक है कि केंद्रीय कर प्रणाली लागू होने के बाद भी अगर महंगाई पर काबू नहीं पाया जा पा रहा, तो इससे पार पाने के क्या उपाय होने चाहिए।

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