BCCI से लड़ते-लड़ते पत्नी के जेवर बेचने की नौबत आ गई थी, इन्होंने दिलाया बिहार को उसका हक
बिहार क्रिकेट के लिए 4 जनवरी 2018 ऐतिहासिक दिन था। गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने बिहार को रणजी ट्रॉफी में खेलने की अनुमति का निर्देश दिया। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस बाबत कहा कि यह फैसला क्रिकेट के हित को ध्यान में रख कर लिया जा रहा है। लेकिन यह इतना भी आसान नहीं था। बिहार को उसका हक दिलाने वाले असल हीरो आदित्य वर्मा हैं। वह क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ बिहार (कैब) के सचिव हैं। उन्होंने इस मामले को लेकर कोर्ट में याचिका दी थी। बीबीसीआई के खिलाफ कोर्ट में वह इस मामले को लेकर लड़े। यहां तक कि उनके सामने अपनी पत्नी के जेवर तक बेचने की नौबत आ गई थी। बता दें कि बिहार का संघर्ष साल 2005 में शुरू हुआ था। बीबीसीआई के अध्यक्ष तब शरद पवार थे। बिहार के मामले में जांच के लिए बनी कमेटी में अरुण जेटली, श्रीनिवासन और शशांक मनोहर थे। 2010 से अब तक रणजी ट्रॉफी में बिहार का भविष्य को लेकर सुप्रीम कोर्ट में 16 बार सुनवाई हुई। गुरुवार (4 जनवरी) को बीसीसीआई बिहार को टूर्नामेंट से बाहर रखना चाहता था। मगर जज 54 साल के वर्मा के सबूतों और दलीलों से संतुष्ट नजर आए। उन्होंने इस दौरान टूर्नामेंट में बिहार की वापसी को लेकर अपनी बात तर्कों के साथ रखी थी।
बिहार विवि से राजनीति विज्ञान में स्नातक वर्मा ने एक अंग्रेजी अखबार को बताया, “कोर्ट ने आखिरकार देख ही लिया कि बीबीसीआई गलत दिशा में जा रहा था। सुनवाई से कुछ निकल कर नहीं आ रहा था। यह बेहद खर्चीला होता जा रहा था। दुनिया के सबसे अमीर स्पोर्ट्स एसोसिएशन से कौन लड़ सकता है?” सुनवाई पर तकरीबन 50 लाख रुपए खर्च हुए थे। वर्मा के मुताबिक, “कांग्रेस एमपी सुबोध कांत सहाय ने लगभग पूरी फीस दी थी। मगर इसको लेकर भी एक सीमा थी।” वर्मा का कहना है, “बीसीसीआई मुझे मानसिक और आर्थिक रूप से नीचे खींच रही थी। मैंने अपना केस अकेले ही लड़ने के बारे में सोचा। यह मेरी पत्नी के आभूषण बेचने से बेहतर था। मैं लीगल ट्रैक से इमोश्नल ट्रैक पर आ गया था।”