बेजवाडा विल्सन और टीएम कृष्णा को मिला मैगसेसे पुरस्कार

भारत के दो लोगों- कर्नाटक गायक टीएम कृष्णा और सिर पर मैला ढोने की प्रथा के उन्मूलन के लिए अभियान चलाने वाले बेजवाडा विल्सन सहित छह लोगों को 2016 के प्रख्यात रमन मैगसेसे पुरस्कार से बुधवार को सम्मानित किया गया।  सफाई कर्मचारी आंदोलन के राष्ट्रीय संयोजक विल्सन (50) को मानवीय गरिमा के अपरिहार्य अधिकार पर जोर देने को लेकर यह पुरस्कार दिया गया है। वहीं 40 साल के कृष्णा को ‘संस्कृति में सामाजिक समावेशिता’ लाने में ‘उभरते नेतृत्व’ की श्रेणी में यह पुरस्कार दिया गया है। जिन चार अन्य को यह पुरस्कार मिला है, उनमें फिलीपीन के कोंचिता कारपियो मोराल्स, इंडोनेशिया के डोम्पेट धुआफा, जापान ओवरसीज कोआॅपरेशन वॉलंटियर्स और लाओस के विएनटिआने रेस्क्यू को यह पुरस्कार दिया गया है।

मनीला स्थित इस पुरस्कार का नाम फिलीपीन के एक पूर्व राष्ट्रपति के नाम पर पड़ा है, जिनकी एक विमान दुर्घटना में मौत हो गई थी। इस पुरस्कार की स्थापना 1957 में हुई थी। इसका उद्देश्य उन लोगों और समूहों को सम्मानित करना है जो विकास से जुड़ी समस्याओं का निपटारा करते हैं। इसे एशिया का नोबेल पुरस्कार माना जाता है। विजेताओं को एक प्रमाणपत्र, पदक और नकद राशि दी जाती है। प्रशस्ति में कृष्णा की सराहना करते हुए कहा गया- इससे जाहिर होता है कि संगीत लोगों के निजी जीवन और समाज में तब्दीली लाने वाली एक मजबूत ताकत है। उनका जन्म चेन्नई में हुआ था। उन्हें छह साल की उम्र से ही कर्नाटक संगीत की शिक्षा मिली।

उभरते नेतृत्व’ श्रेणी के लिए थोडुर मदाबुसी कृष्णा के नाम का चयन करते हुए न्यासी बोर्ड ने भारत की गहरी सामाजिक खाइयों को पाटने, जाति और वर्ग की बाधाओं को तोड़ने में बतौर कलाकार और कला की शक्ति के हिमायती के रूप में उनकी मजबूत प्रतिबद्धता को रेखांकित किया। वहीं, दलित परिवार में जन्मे विल्सन का कहना है कि सिर पर मैला ढोने की अमानवीय प्रथा किसी मानव के लिए नहीं होनी चाहिए। प्रशस्ति में कहा गया है कि सिर पर मैला ढोने की प्रथा भारत में मानवता के नाम पर कलंक है। मैला हटाने के काम में शुष्क शौचालयों से मानव का मल हटाना और तय स्थान तक उसे सिर पर ढोना शामिल है। इसमें कहा गया कि स्कूल में उनके साथ बहिष्कृत जैसा बर्ताव होता था और अपने परिवार की किस्मत से पूरी तरह वाकिफ बेजवाडा में काफी रोष भर गया था। लेकिन उन्होंने सिर पर मैला ढोने की प्रथा के उन्मूलन के लिए बाद में इस रोष को एक धर्मयुद्ध के माध्यम से निकाला।

उन्होंने नैतिक अत्याचार को दूर करने की भावना से ही नहीं बल्कि सामूहिक संगठन की अद्भुत क्षमता के साथ भारत की पेचीदा कानूनी प्रणाली के भीतर 32 सालों तक संघर्ष किया। प्रशस्ति में कहा गया है कि बेजवाडा विल्सन का इस पुरस्कार के लिए चयन कर न्यासी बोर्ड उनकी नैतिक ऊर्जा और विलक्षण कौशल को मान्यता देता है, जिसके जरिए उन्होंने एक जमीनी आंदोलन का भारत में नेतृत्व किया।

 

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