भारत-म्यांमार सीमा पर कंटीले तारों की बाड़ पर बढ़ती नाराज़गी,
पूर्वोत्तर में ‘जो’ जनजाति के लोग मिजोरम, मणिपुर और नागालैंड से लगी म्यांमार की सीमा पर कंटीले तारों की बाड़ लगाने के केंद्र सरकार के फैसले का विरोध कर रहे हैं.
इस तबके के लोग मुक्त आवाजाही समझौते को रद्द करने के फैसले से भी काफी नाराज हैं.
उन्होंने इस फैसले के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू किया है.
मुक्त आवाजाही समझौते यानी फ्री मूवमेंट रेजिम (एफएमआर) के तहत दोनों देशों यानी भारत और म्यांमार के नागरिक बिना पासपोर्ट और वीजा के एक-दूसरे की सीमा में 16 किमी तक जाकर वहां दो सप्ताह तक रह सकते हैं. इसके लिए सिर्फ एक परमिट की जरूरत पड़ती है.
जो-रीयूनिफिकेशन ऑर्गनाइजेशन या जोरो की दलील है कि इस जनजाति के लोग भारत, म्यांमार और बांग्लादेश के अलग-अलग हिस्सों में रहते हैं. उनके परिवार के कई सदस्य भी अलग-अलग देशों में रहते हैं.
जोरो समुदाय के लोग लंबे अरसे से कुकी-चिन-मिजो औऱ जोमी जनजाति के लोगों को एक अलग प्रशासनिक व्यवस्था के तहत शामिल करने की मांग उठाते रहे हैं.
क्या कह रहे हैं संगठन?
जोरो नेताओं का कहना है कि म्यांमार से सटी सीमा पर कंटीले तारों की बाड़ लगाने या पासपोर्ट और वीजा के बिना ही एक-दूसरे के देश में जाने की अनुमति देने वाले फ्री मूवमेंट रेजिम (एफएमआर) को रद्द करने की स्थिति में उनका परिवार बिखर जाएगा और ज्यादातर लोग अपने परिवार से कट जाएंगे.
इसी वजह से मिजोरम के कई इलाकों के साथ ही मणिपुर के टेंग्नोपाल जिले और नागालैंड के आदिवासी इलाकों में जो समेत कई जनजातियों के लोग केंद्र सरकार के इस फैसले का विरोध कर रहे हैं.
उन्होंने मिजोरम से लगी म्यांमार की सीमा पर भी प्रदर्शन किए हैं.
जो समुदाय के लोगों ने जब सीमा पर बने प्रवेशद्वार पर एक सभा की थी तो उसे देखने-सुनने के लिए म्यांमार से भी जो समुदाय के कई लोग मौके पर जुटे थे.
यह लोग म्यांमार की सीमा में ही रहते हुए इस प्रदर्शन और सभा को देख-सुन रहे थे. सीमा पर लगे प्रवेश द्वार फिलहाल बंद हैं.
लेकिन जब सभा खत्म हुई तो दोनों तरफ के लोगों को प्रवेश द्वार के बीच से बात करते और हाथ मिलाते हुए देखा गया.पीटीआई