गुजरात चुनाव नतीजे 2017: छठी बार भी बीजेपी क्यों जीती? जानिए-पांच बड़ी बातें

गुजरात विधान सभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने लगातार छठी बार जीत दर्ज की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के लिए यह चुनाव नाक की लड़ाई बन चुकी थी क्योंकि गुजरात उन दोनों का गृह राज्य है। शायद यही वजह है कि पीएम मोदी और अमित शाह ने गुजरात चुनाव प्रचार में अपना सब कुछ झोंक दिया। पीएम मोदी ने खुद गुजरात में 40 चुनावी रैलियां कीं। यहां तक कि चुनावों में पीएम मोदी पर मर्यादा को ताक पर रखने के भी आरोप लगे। पार्टी अध्यक्ष ने भी बूथ लेवेल और पेज मैनेजर तक की रणनीति बनाई। इन्हीं वजहों से बीजेपी कांग्रेस को फिर से पीछे धकेलने में कामयाब रही। आइए जानते हैं उन पांच बड़ी बातों के बारे में जिसने बीजेपी को छठी बार राज्य की बागडोर सौंपी है-

1. पीएम मोदी का व्यक्तित्व और गुजराती लगाव: गुजरात पीएम नरेंद्र मोदी की जन्मस्थली है। मोदी इस राज्य की सियासी नब्ज को बेहद अच्छे से समझते हैं। वह खुद कई बार इस राज्य के सीएम रहे। पार्टी को उनके चेहरे के आधार पर ही राज्य में जीत मिली। ऐसे में उनसे बेहतर राज्य की राजनीतिक हवा को कौन समझ सकता है। देश भर में हिंदी में भाषण देने वाले मोदी गृह राज्य जाकर गुजराती में लोगों से संवाद करते दिखे। इसका मकसद गुजराती अस्मिता और गुजरातियों को जोड़ना था, जिसमें पार्टी और पीएम मोदी कामयाब रहे।

2. मोदी को नीच कहना और गुजराती अस्मिता का उभार: कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नीच कहना बीजेपी को फायदा पहुंचा गया। पीएम मोदी ने खुद चुनावी रैलियों में इसे मुद्दा बनाया और अपने को पीड़ित, शोषित और नीची जाति में पैदा हुआ बताकर गुजराती जनमानस में गुजराती अस्मिता को जगाया। इसका नतीजा दूसरे चरण के चुनाव में दिखा। ओबीसी वोटरों में बिखराव हुआ और बड़ा हिस्सा बीजेपी के पक्ष में लामबंद हुआ।

3. अमित शाह की पेज मैनेजर वाली रणनीति: बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने पार्टी को एक नए मुकाम पर पहुंचाया है। आज आधे से ज्यादा राज्यों में बीजेपी का शासन है तो इसमें मोदी-शाह की जोड़ी का बड़ा योगदान है। इसका बहुत कुछ क्रेडिट अमित शाह की चुनावी रणनीति को जाता है। कुछ राजनीतिक समीक्षक उन्हें आधुनिक राजनीतिक का चाणक्य भी करार देते हैं। शाह के सियासी ज्ञान पर बहुत कुछ लिखा-पढ़ा चुका है। अमित शाह की चुनावी रणनीति का सबसे बड़ा पहलू यह है कि वह बूथ लेवल तक की रणनीति पर भी खुद नजर रखते हैं। इस बार उन्होंने बूथ लेवल से भी आगे पेज मैनेजर तक की सियासी रणनीति बनाई। यानी हरेक बूथ के वोटरलिस्ट के हरेक पेज का मैनेजर नियुक्त किया जो सीधे पार्टी के कंट्रोल रूम से संपर्क में रहता था।

4. बीच चुनाव आर्थिक मोर्चे पर देश की तरक्की से जुड़ी कई खबरें: गुजरात चुनाव का एलान होने से लेकर गुजरात चुनाव संपन्न होने तक आर्थिक मोर्चे पर मोदी सरकार के लिए कई राहतभरी खबरें आईं। ईज ऑफ डूइंग बिजनेस इन इंडिया की रैंकिंग में उछाल, जीडीपी में ग्रोथ, जीएसटी की दरों में कटौती, मूडीज की क्रेडिट रैंकिंग में सुधार की खबरें इसी दौरान आईं। माना जा रहा है कि बीजेपी ने इन खबरों को मोदी सरकार की सफलता के पक्ष में भुनाया जबकि कांग्रेस लंबे समय से नोटबंदी-जीएसटी के साथ-साथ महंगाई और बेरोजगारी के सवाल पर केंद्र की बीजेपी सरकार को घेरती रही थी।

5. अहमद पटेल और हार्दिक पटेल पर बीजेपी की आक्रामकता: कांग्रेस ने गुजरात चुनाव के लिए सीएम कैंडिडेट का ऐलान नहीं किया था। बीजेपी ने इसका फायदा उठाया। पीएम मोदी ने खुद यह कहकर हिन्दु वोटों को लामबंद करने की कोशिश की कि कांग्रेस पाकिस्तानी सहयोग से अहमद पटेल को सीएम बनाना चाहती है। राजनीतिक जानकारों के मुताबिक मोदी का यह दांव आखिरी चरण के चुनाव में हिन्दू मतदाताओं को लामबंद करमने में अहम रहा। इसके अलावा कांग्रेस ने जिस आक्रामकता के साथ चुनाव प्रचार की शुरुआत की थी वह अंतिम दौर तक आते-आते कमजोर पड़ गया। पाटीदार नेता हार्दिक पटेल को भी बीजेपी ने जिस तरह से घेरा और बीच चुनाव में जिस तरह से उसकी सेक्स सीडी आई, उसने पाटीदारों में फूट पड़ी और अंतत: इसका फायदा बीजेपी को हुआ।

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