जानलेवा खेल की कड़ियां
कुछ समय पहले मुंबई में चौदह साल के बच्चे ने जब ‘ब्लू व्हेल गेम’ की चुनौती को पूरा करने के लिए पांचवीं मंजिल से कूद कर आत्महत्या की, तो लगा यह पहला मामला है। हमारे यहां ऐसे आभासी खेल के जाल में फंस कर और बच्चे अपनी जान नहीं गंवाएंगे। अभिभावक सतर्क हो जाएंगे और सरकार भी सख्त कदम उठाएगी। ऐसा हुआ भी। अभिभावक स्मार्ट गैजेट्स चलाने वाले बच्चों को लेकर काफी सजग हुए और सरकार ने भी आत्महत्या के लिए उकसाने वाले ब्लू व्हेल आॅनलाइन खेल पर रोक लगाने के लिए प्रमुख सर्च इंजिन और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को यह गेम डाउनलोड करने संबंधी सभी लिंक हटाने के निर्देश दिए हैं।
बावजूद इसके, इस आभासी खेल के कारण बच्चे आत्महत्या जैसे दुखद कदम उठा रहे हैं। इस खूनी खेल का पागलपन आए दिन सुर्खियां बन रहा है। ट्रेन के आगे कूद कर जान देने से लेकर स्कूल की छत से छलांग लगा देने जैसे वाकये सामने आ रहे हैं। मोबाइल फोन और लैपटॉप के जरिए खेले जाने वाले ब्लू व्हेल गेम की वजह से वर्चुअल खेलों के जाल में फंस कर बच्चे खुद ही अपने जीवन से हार रहे हैं। गौरतलब है कि इस ‘गेम’ की वजह से अब तक दुनिया भर में करीब ढाई सौ बच्चे आत्महत्या कर चुके हैं। इनमें 130 बच्चे सिर्फ रूस के थे।
स्मार्ट गैजेट्स की दुनिया का यह आभासी खेल बच्चों की मासूमियत ही नहीं, जिंदगी भी लील रहा है। इस गेम को खेलने वाले बच्चों में आत्महत्या की प्रवृत्ति पनपने की घटनाओं की शिकायतों के बाद केरल, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र सहित राज्य सरकारों की मांग पर केंद्र सरकार ने ‘ब्लू व्हेल चैलेंज’ पर रोक लगाने का निर्णय लिया।
दरअसल, यह एक ऐसा खेल है जो बच्चे के मन-मस्तिष्क को काबू में करते हुए उसे मौत के मुंह तक ले जाता है। इस खेल की शुरुआत में ही खेलने वाले को एक मालिक मिलता है, जो कदम-कदम पर खेलने वाले को बहुत कुछ अजब-गजब करने को उकसाता है। ब्लू व्हेल चैलेंज एक ऐसा खेल है जो कि यूजर्स को सोशल मीडिया के जरिए पचास दिन में इसकी चुनौतियों को पूरा करने के कई काम देता है। पचास दिन का यह सुसाइड चैलेंज बच्चों को लगातार कोई न कोई काम देता रहता है, जो उन्हें पूरे करने होते हैं। हैरान करने वाली बात यह भी है कि इनमें से अधिकतर काम खुद को नुकसान या पीड़ा पहुंचाने वाले ही होते हैं। जैसे खुद के खून से ब्लू व्हेल बनाना, दिन-दिन भर डरावनी फिल्में देखना और देर रात को जागना।
इस जानलेवा खेल में पचासवें दिन खेलने वाले को जान देकर विजेता बनने की बात कही जाती है। कहना गलत नहीं होगा कि यही आभासी मालिक अगले पचास दिनों तक यूजर के मन-मस्तिष्क को काबू में रखता है। यही वजह है कि कई बच्चे इस अविश्वसनीय खेल के जाल में फंस कर अपनी जान गंवा बैठते हैं। गौरतलब है कि इस खेल को मनोविज्ञान के छात्र फिलिप बुडेकिन ने साल 2013 में बनाया था। इसके चलते रूस में आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं के बीच उसे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया।
फिलिप ने स्वीकार भी किया है कि उसने जान-बूझ कर किशोरों को मौत के मुंह में धकेलने के लिए यह गेम बनाया है। हाथ की नसों को काटने जैसे काम दिए जाने वाले इस खेल में कार्यों को पूरा करने के दौरान ऐसे कई मौके आते हैं जो कि इंसान को आत्महत्या के लिए उकसाते हैं। यह चौंकाने वाला आभासी खेल हद दर्जे का सनकीपन यूजर के दिलो-दिमाग में भर देता है। चिंता की बात यह है कि जीत के नाम अपनी जान देने की राह सुझाने वाला यह पागलपन बच्चों को गुमराह करने में सफल भी है।
यह सच है कि इंटरनेट दुनिया अब स्मार्ट गैजेट्स के जरिए हमारी मुठ्ठी में आ गई है। लेकिन आभासी संसार का एक कटु सच यह भी है कि साइबर संसार में ऐसे कई तत्त्व मौजूद हैं जिनसे सतर्क और सजग रहने की दरकार है। ध्यान रहे कि कुछ समय पहले पोकेमॉन गो नाम से भी एक लोकेशन बेस्ड गेम खासा लोकप्रिय हुआ था। यह खेलने वाले की जीपीएस लोकेशन खोज कर उसे काम भेजता है। इसकी वजह से कई लोग मोबाइल स्क्रीन पर देखते हुए हादसों के शिकार हुए हैं। क्योंकि इस खेल की दीवानगी में इंसान अपने आसपास की चीजों से अनभिज्ञ हो जाता है और किसी न किसी दुर्घटना का शिकार बन जाता है। ऐसे में खेल के नाम पर साइबर दुनिया में परोसे जा रहे ऐसे हैरतअंगेज एप्स सचमुच चिंता का विषय बन गए हैं।
इतना ही नहीं, स्मार्ट गजेट्स में खोए रहने वाले बच्चों की न केवल सहनशीलता खो गई है बल्कि तकलीफों से जूझने की उनकी क्षमता भी कम हो रही है। अब अच्छा, बुरा सबकुछ उनकी बर्दाश्त से बाहर है। शारीरिक और मानसिक व्यवहारगत समस्याएं भी कमउम्र में ही उन्हें घेर रही हैं। बच्चे इन गैजेट्स के जाल में बड़ों से ज्यादा फंस रहे हैं। सामाजिक जीवन से दूर करने वाले इस आभासी संसार में समय बिताने के चलते बच्चों के शारीरिक और संवेदनात्मक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। कोई हैरानी की बात नहीं कि ऐसे गैर-सामाजिक और अकेलेपन का जीवन जी रहे बच्चे एक आभासी मास्टर के बताए टास्क को अंजाम देने के लिए जान तक दे रहे हैं। ऐसे खेल खेलते हुए घंटों स्मार्ट फोन की स्क्रीन को ताकते बच्चे कई तरह की व्याधियों के जाल में भी फंस रहे हैं। गौरतलब है कि स्मार्ट फोन की लत को चीन, कोरिया और ताईवान ने तो राष्ट्रीय स्वास्थ्य के लिए गंभीर संकट वाली बीमारी में शुमार किया है। ऐसे में यह चिंतनीय ही है कि हमारे यहां भी इंटरनेट पर समय लंबा समय बिताने वाले किशोरों और बच्चों के आंकड़े तेजी से बढ़ रहे हैं। नतीजतन, साइबर संसार की ऐसी अनोखी मुसीबतें भी दस्तक देने लगी हैं।
आभासी संसार और तकनीकी गैजेट्स इंसान की सहूलियत तक सीमित नहीं हैं। इनके अजब-गजब इस्तेमाल की सनक इन्हें जानलेवा बना रही है। तभी तो पोकेमोन गो और द ब्लू व्हेल जैसे गेम्स बच्चों की जान के दुश्मन बने हुए हैं। दुखद आभासी खेल के कारण जान देने के ऐसे वाकये रुक नहीं रहे हैं। साइबर संसार की अनदेखी-अनजान दुनिया में अपनी समझ और दिमाग को गिरवी रखने का यह कैसा जंजाल है? यह वाकई विचारणीय है कि तकनीक और सनक का यह मेल आत्मीयता, आपसी संवाद और सामाजिकता तो छीन ही रहा है, अब हमारा विवेक भी इसकी बलि चढ़ रहा है।
निस्संदेह ऐसी घटनाएं बच्चों की जिंदगी में स्मार्ट गैजेट्स और इंटरनेट के बढ़ते दखल की बानगी हैं, जो सचेत तो करती ही हैं, अनगिनत सवाल भी लिए हैं। अभिभावकों के लिए यह गंभीरता से सोचने का विषय है कि बच्चे स्मार्ट गैजेट्स पर क्या और कैसी सामग्री देख रहे हैं? मनोरंजन के नाम पर कैसे खेल खेल रहे हैं? बड़ों को समझना होगा कि स्मार्ट गैजेट्स के जरिये बच्चों तक निर्बाध पहुंच रही चाही-अनचाही खबरें और चीजें, निगरानी चाहती हैं। क्योंकि साइबर मायाजाल में भटकाने वाली सामग्री तो है ही, अभिभावकों की व्यस्तता के चलते बच्चे वर्चुअल दुनिया में काफी समय भी बिता रहे हैं। ऐसे में अभिभावक समय देकर सार्थक संवाद करते हुए बच्चों को संभाल सकते हैं। बड़ी पीढ़ी को समझना होगा कि ऐसे मामले बच्चों की मनोवैज्ञानिक उलझन, संवादहीनता और अकेलेपन के ही नतीजे हैं।