बृजभूषण शरण सिंह पर खिलाड़ियों के यौन शोषण मामले में लगी धाराओं के क्या हैं मायने,

बीउूरो सुशीला :

दिल्ली के राउज़ एवेन्यू कोर्ट ने बीजेपी सांसद बृजभूषण शरण सिंह के ख़िलाफ़ दायर किए गए यौन शोषण मामले में आरोप तय कर दिए हैं.

भारत की कुछ महिला पहलवानों ने भारतीय कुश्ती संघ के पूर्व अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के ख़िलाफ़ यौन शोषण का मामला दर्ज किया था.

इस मामले में बृजभूषण शरण सिंह के सचिव विनोद तोमर के ख़िलाफ़ भी मामला दायर किया गया है.

कोर्ट में आरोप तय होने के बाद ओलंपिक मेडल विजेता और छह शिकायतकर्ताओं में से एक साक्षी मलिक ने बीबीसी हिंदी से बातचीत में कहा कि ये एक अच्छा क़दम है और वो जीत की तरफ़ बढ़ रही हैं.

उन्होंने फ़ोन पर बताया, ”हमें कहा गया है कि हमारे आरोप झूठे हैं, लेकिन अब कोर्ट ने आरोप तय कर दिए हैं. ये लड़ाई मेरी, विनेश और बजरंग की नहीं है बल्कि उन भावी युवा महिला पहलवानों के लिए भी है ताकि भविष्य में उन्हें ऐसी स्थिति से न गुज़रना पड़े.”

आरोप तय होने के बाद समाचार एजेंसी पीटीआई और एएनआई से बातचीत में बृजभूषण शरण सिंह ने कहा कि वो न्यायपालिका के फ़ैसले का स्वागत करते हैं और अब उनके लिए रास्ते खुल गए हैं

उन्होंने कहा, ”मुझ पर जो चार्जशीट लगी थी उसका मैंने विरोध किया था लेकिन कोर्ट ने उसे नहीं माना. कोर्ट ने एक केस छोड़कर बाक़ी मामलों में आरोप तय किए हैं.”

बृजभूषण शरण सिंह ने कहा, ”जब आरोप तय होते हैं तो उसके बाद कोई सबूत, कोई साक्ष्य और कोई गवाह आप अलग से नहीं रख सकते हैं. जो पुलिस ने चार्जशीट में लिखा है, उसी के इर्द-गिर्द रहना पड़ता है. मेरे पास विकल्प खुले हैं और मैं इसका सामना करूँगा.”

क्या धाराएँ लगी हैं?

इस मामले में राउज़ एवेन्यू कोर्ट में अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट प्रियंका राजपूत ने बृजभूषण शरण सिंह के ख़िलाफ़ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 354, 354ए और सेक्शन 506 के पार्ट-1 के आधार पर आरोप तय किए हैं.

क़ानूनी मामलों की जानकारी देने वाली वेबसाइट लाइव लॉ के मुताबिक़, मजिस्ट्रेट प्रियंका राजपूत का कहना था, ”बृजभूषण शरण सिंह के ख़िलाफ़ सेक्शन 354, 354ए के तहत आरोप तय करने के लिए इस कोर्ट के पास रिकॉर्ड पर पर्याप्त सबूत हैं, जो पीड़िता एक, दो, तीन, चार और पाँच से संबंधित हैं. सेक्शन 506 पीड़िता एक और पाँच से जुड़ा हुआ है.”

हालाँकि कोर्ट ने बृजभूषण शरण सिंह के ख़िलाफ़ पीड़िता छह के आरोपों को हटा दिया.

बृजभूषण शरण सिंह के सचिव रहे विनोद तोमर के ख़िलाफ़ भी कोर्ट ने सेक्शन 506(1) लगाया है.

ये धाराएँ क्या हैं और उनमें सज़ा का क्या प्रावधान है?

धारा 354 :

  • स्त्री की शालीनता को ठेस पहुँचाने के इरादे से उस पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग.

ऐसे मामले में एक से लेकर पाँच साल तक की सज़ा हो सकती है और जुर्माना भी लगाया जा सकता है.

धारा 354 ए: यौन उत्पीड़न-

  • शारीरिक संपर्क या अवांछित और स्पष्ट यौन प्रस्ताव
  • यौन संबंध बनाने की मांग करना
  • किसी महिला की इच्छा के विरुद्ध उसे पोर्नोग्राफ़ी दिखाना
  • कामुक टिप्पणियाँ करना

इन मामलों में किसी में तीन साल की और किसी में एक साल की सज़ा हो सकती है. वहीं इसमें जुर्माने का भी प्रावधान है.

अब आगे क्या होगा?

साक्षी मलिक का कहना है, ”डेढ़ साल तक हम लड़ाई लड़ रहे थे अब हमें कोर्ट में लंबी लड़ाई लड़नी है.”

बृजभूषण सिंह के ख़िलाफ़ यौन उत्पीड़न के आरोप पहली बार साल 2023 के जनवरी महीने में सामने आए थे जब महिला खिलाड़ियों विनेश फोगाट, साक्षी मलिक और बजरंग पुनिया ने दिल्ली के जंतर-मंतर में इकट्ठा होकर मीडिया के समक्ष अपनी बातें कहीं थीं.

इन खिलाड़ियों ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर एक महीने से ज़्यादा समय तक रहकर बृजभूषण शरण सिंह की गिरफ़्तारी की मांग की थी.

इस मामले में एफ़आईआर दर्ज न होने पर खिलाड़ियों ने सुप्रीम कोर्ट का रुख़ किया था, जिसके बाद दिल्ली पुलिस को नोटिस गया था और फिर एफ़आईआर दर्ज हुई थी.

बृजभूषण शरण सिंह और विनोद तोमर के ख़िलाफ़ दिल्ली पुलिस ने साल 2023 के जून महीने में चार्जशीट दायर की थी. वहीं इसी मामले में एक पहलवान ने अपनी शिकायत वापस ले ली थी.

बृजभूषण शरण सिंह के वकील डॉ. एपी सिंह, बीबीसी से बातचीत में कहते हैं, ”एक शिकायतकर्ता के शिकायत वापस लेने के बाद दिल्ली पुलिस ने पॉक्सो एक्ट के तहत मामला निरस्त करने के लिए रिपोर्ट दायर की थी. ये मामला पटियाला की सेशन कोर्ट में विचाराधीन है.”

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील डॉ. एपी सिंह का कहना है कि बृजभूषण शरण सिंह मामले पर आगे का क़दम कुछ महीनों में निर्धारित किया जाएगा.

महिलाओं के मुद्दे गंभीरता से नहीं लिए जाते’

बृजभूषण शरण सिंह कैसरगंज से सांसद हैं और कहा जाता है कि आसपास के चार ज़िलों गोंडा, बहराइच, बलरामपुर और श्रावस्ती में उनका काफ़ी दबदबा है.

इस बार बीजेपी ने उनका टिकट काटकर उनके बेटे करण भूषण सिंह को पार्टी का उम्मीदवार बनाया है.

साक्षी मलिक इस बात पर नाराज़गी जताती हैं और कहती हैं, “कैसरगंज से बृजभूषण शरण सिंह के बेटे को टिकट नहीं मिलना चाहिए था, ऐसे में फ़ेडरेशन को बृजभूषण ही चलाएँगे. लेकिन उनके ख़िलाफ़ आरोप तय होने के बाद अब फ़ेडरेशन में कोई उत्पीड़न करने से पहले सौ बार सोचेगा कि उसके साथ भी ऐसा हो सकता है.”

साक्षा मलिक दोहराती हैं- “बृजभूषण शरण को शुरुआत से बचाया गया है, नहीं तो खिलाड़ियों को 40 दिन तक सड़क पर नहीं बैठना पड़ता. ऐसे में बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ का नारा वो तभी कामयाब बताते जब इस मामले में तुरंत कार्रवाई होती.”

उत्तर प्रदेश की राजनीति को गहराई से समझने वाली पत्रकार सुनीता एरॉन कहती हैं कि राजनीति में महिलाओं के मुद्दों को गंभीरता से नहीं लिया जाता है.

सुनीता एरॉन कहती हैं, ”बृजभूषण का अपने क्षेत्र में होल्ड है लेकिन ये देखना चाहिए कि नरेंद्र मोदी उनसे बड़े नेता हैं. ऐसे में उन्हें जीतने के लिए बृजभूषण की ज़रूरत नहीं है क्योंकि मोदी बहुत पॉपुलर हैं और मुख्यमंत्री ख़ुद ठाकुर हैं. लेकिन ये देखा गया है कि जब महिलाओं के मुद्दे आते हैं तो राजनेता उसे गंभीरता से नहीं लेते.”

सुनीता एरॉन कहती हैं कि नारों से संदेश तो सकारात्मक जाता है लेकिन महिलाओं के मुद्दे जैसे हाथरस, उन्नाव आदि , ऐसे कई मामले हैं जो कभी राजनीतिक मुद्दे नहीं बन पाते हैं. उनके अनुसार महिलाएं भी इन मुद्दों पर वोट नहीं करती हैं.

वे आगे कहती हैं कि अगर अपराध को रोकना है तो राजनीतिज्ञों को कभी उम्मीदवार इस बलबूते नहीं बनाना चाहिए क्योंकि वो चंद सीट जीत सकता है.

बृजभूषण शरण सिंह की बात की जाए तो वो कैसरगंज सीट से पिछले तीन बार से लगातर सांसद निर्वाचित हुए हैं.

साल 2009 में वो समाजवादी पार्टी से जीते उसके बाद 2014 और 2019 में बीजेपी प्रत्याशी के तौर पर उन्होंने जीत दर्ज की थी. वे भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष भी रह चुके हैं.

वरिष्ठ खेल पत्रकार शारदा उगरा का कहना है कि इस पूरे मामले में एक संदेश जाता है कि राजनीति में कोई भी शख़्स क्यों न हो, उस पर कैसे भी मामले लगे अगर पार्टी उसके ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई न करे तब तक कुछ फ़र्क़ नहीं पड़ता.

वे कहती हैं कि पहलवानों ने क़रीब डेढ़ साल तक लड़ाई लड़ी लेकिन इससे और खिलाड़ी प्रेरित होंगी कि अन्याय के ख़िलाफ़ अपनी आवाज़ कैसे उठाई जा सकती है.

उनके अनुसार, “ये दुखद बात है लेकिन खिलाड़ियों ने संघर्ष किया और बहादुरी के साथ किया क्योंकि उन्हें पता था कि वो किसके ख़िलाफ़ क़दम उठा रहे हैं.”

वे मानती हैं कि बृजभूषण के बेटे को टिकट मिलना ये भी दर्शाता है कि पार्टी में परिवारवाद है और अब जो भारतीय कुश्ती संघ का अध्यक्ष बनेगा, वो करण भूषण सिंह को सलाम करेगा.

साल 2023 में भारतीय कुश्ती संघ के हुए चुनाव में संजय सिंह ने जीत हासिल की थी हालांकि इसके बाद काफ़ी हंगामा हुआ और विरोध कर रहे पहलवानों ने भी इस पर एतराज़ जताया था.

सरकार ने इस मामले में कहा था कि नियमों का उल्लंघन हुआ है और भारतीय कुश्ती संघ को निलंबित कर दिया. वहीं खेल मंत्रालय ने भारतीय ओलंपिक एसोसिएशन (आईओए) को एड-हॉक कमेटी बनाकर संघ के मामलों को अपने हाथ में लेने को कहा.

लेकिन इसके बाद विश्व कुश्ती की सर्वोच्च संस्था यूनाइटेड वर्ल्ड रेसलिंग ने चुनाव को मान्यता दी और निलंबन हटा दिया था.

यूनाइटेड वर्ल्ड रेसलिंग ने भारतीय कुश्ती संघ के समय पर चुनाव न होने के कारण निलंबन किया था.

जिसके बाद आईओए ने एड-हॉक कमेटी को ख़त्म कर दिया.

हालांकि सरकार और खेल मंत्रालय की तरफ़ से अभी निलंबन नहीं हटाया गया है.

जानकार मानते हैं कि महिलाओं को एकजुट होकर अपने मुद्दे उठाने चाहिए और इस मामले ने एक उम्मीद की किरण फ़िलहाल के लिए ज़रूर दी है.