2018 बजट: टैक्स में छूट और होम लोन पर ज्यादा सब्सिडी, जानें मिल सकती है और कौन सी सौगात
आदिल शेट्टी
मुझे वित्त मंत्री के साथ एक पूर्व-बजट परामर्श में भाग लेने का अवसर मिला। यह परामर्श, बैंकिंग और फाइनैंस के सन्दर्भ में था, जहां वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इंडस्ट्री के लीडर्स को आगामी बजट के संबंध में अपना सुझाव देने के लिए आमंत्रित किया था। इस बैठक में राज्य वित्त मंत्री पोन राधाकृष्णन, राजस्व सचिव हंसमुख अधिया, और आरबीआई डिप्टी गवर्नर एनएस विश्वनाथन भी शामिल थे। आगामी बजट के दौरान स्वीकार किए जाने पर, इन अनुरोधों से देश के लोगों को बहुत फायदा होगा।
टर्म लाइफ इंश्योरेंस के लिए एक अलग टैक्स छूट की व्यवस्था करना: अभी आयकर अधिनियम की धारा 80C के तहत अधिकतम 1.5 लाख रुपए तक की टैक्स छूट मिलती है। इंडस्ट्री चाहती है कि ज्यादा से ज्यादा लोग टर्म प्लान खरीदें, जिससे लोगों को कम प्रीमियम लागत पर अपने जीवन को पर्याप्त बीमा के माध्यम से सुरक्षित करने में मदद मिल सके। इसलिए इंडस्ट्री, टर्म इंश्योरेंस के लिए दिए जाने वाले प्रीमियम के लिए एक अलग छूट सीमा चाहती है।
किफायती आवास पर सीमा बढ़ाना: हाल ही में, मध्यम आय वर्ग वाले परिवारों को होम लोन पर ब्याज दर सब्सिडी दी गई है। उदाहरण के लिए, साल में 6 से 12 लाख रुपए कमाने वाले परिवार, 9 लाख रुपए तक के होम लोन पर 4% सब्सिडी का दावा कर सकते हैं। साल में 12 से 18 लाख रुपए कमाने वाले परिवारों को 12 लाख रुपए तक के लोन पर 3% सब्सिडी मिल सकती है। इंडस्ट्री चाहती है कि इस सीमा को बढ़ा दिया जाय ताकि वे शहरी क्षेत्रों में प्रॉपर्टी खरीदने के लिए लगातार बढ़ रही लागत के अनुरूप हों।
बैंक ब्याज के लिए टीडीएस सीमा को बढ़ाना: बैंक ब्याज के लिए टीडीएस (टैक्स डिडक्टेड एट सोर्स) की वर्तमान सीमा 10,000 रुपए से बढ़ा देनी चाहिए क्योंकि यह सीमा आखिरी बार साल 1997 में तय की गई थी। ऐसा करने से बैंक ग्राहकों के हाथ में थोड़ा और ब्याज रह सकेगा।
यूपीआई पर और ज्यादा जोर देना: यूपीआई को उद्योग द्वारा पीओएस मशीनों के एक बेहतर विकल्प के रूप में देखा जा रहा है। भविष्य में, अधिकांश भारतीय, स्मार्टफोन के माध्यम से इंटरनेट से जुड़ जाएंगे। इसलिए यूपीआई पर ज्यादा से ज्यादा जोर देना बेहतर होगा क्योंकि यह बहुत उपयोगी, और पीओएस से सस्ता होने के साथ-साथ इसके रखरखाव की जरूरत भी कम पड़ती है।
एफडी टैक्सेशन को डेब्ट म्यूच्यूअल फंड्स के बराबर लाना: लाखों भारतीय, फिक्स्ड डिपोजिट के माध्यम से निवेश करना पसंद करते हैं जो सुरक्षित और विश्वसनीय होने के बावजूद काफी टैक्स अकुशल है। यदि आप 30% टैक्स सीमा के अंतर्गत आते हैं तो 7% एफडी पर असल में आपको 4.9% ही मिलता है जो महंगाई को मात नहीं दे पाएगी या पैसे बनाने में मदद नहीं कर पाएगी। इसलिए, इंडस्ट्री ने एफडी रिटर्न पर लगने वाले टैक्स को डेब्ट म्यूचुअल फंड्स के बराबर लाने का प्रस्ताव दिया है। जहां निवेशक को सिर्फ पैसे उठाने पर ही टैक्स देना होगा और यदि यह पैसा तीन साल बाद उठाया जाता है तो टैक्स की गणना, इंडेक्सेशन लाभ के साथ 20.6% पर दीर्घकालिक पूंजी लाभ के आधार पर की जाएगी जिससे टैक्स की रकम काफी कम हो जाएगी।
ई-साइन और ई-केवाईसी संबंधी मांग: मोबाइल के माध्यम से तुरंत अकाउंट खोलने से होने वाले लागत संबंधी फायदों और अत्यधिक पहुंच और ई-एनएसीएच, ओटीपी के माध्यम से ई-केवाईसी, ई-साइन के उपयोग के माध्यम से पेपरलेस अभियान के बारे में जानते होंगे। इसके बावजूद हमारे देश में वित्तीय समावेश के दूरगामी परिणाम देखने को मिलेंगे जहां अधिकांश भारतीय, किसी न किसी कारण से लोन, इंश्योरेंस और म्यूचुअल फंड्स के फायदे से वंचित रह जाते हैं।