सदन का समय
जनता की आकांक्षाओं और उम्मीदों का सर्वोच्च मंच यानी संसद गंभीर विषयों पर सार्थक बहस के बजाय अब हंगामे और हो-हल्ले के लिए ही अधिक सुर्खियों में रहने लगी है। इस शीतकालीन सत्र में भी राजनीतिक दल गरीबी, भुखमरी, कृषि संकट और बेरोजगारी जैसे गंभीर मसलों पर सार्थक बहस करने के बजाय आपस में तनातनी करने में तुले हैं। संसद में शोर-शराबा, वेल में जाकर नारेबाजी, एक-दूसरे पर निजी कटाक्ष जैसे आचरण अब सामान्य होते जा रहे हैं। यह आम जनभावना के खिलाफ है, क्योंकि लोग संसद में सार्थक बहस
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