एससी/एसटी एक्ट के प्रावधानों की बहाली के रास्ते खोज रहा केंद्र
केंद्र सरकार महसूस करती है कि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण कानून पर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटे जाने की आवश्यकता है। सूत्रों के मुताबिक इस कानून के वास्तविक प्रावधानों को बहाल करने के लिए अध्यादेश लाया जाना उन विकल्पों में से एक है जिन पर विचार किया जा रहा है। वास्तविक प्रावधानों को बहाल करने के लिए अध्यादेश लाए जाने से रोष शांत होगा। सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने के लिए अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण कानून 1989 में संशोधन के वास्ते जुलाई में संसद के मानसून सत्र में विधेयक लाया जाना भी सरकार के सामने दूसरा विकल्प है। सूत्रों के मुताबिक यदि अध्यादेश जारी किया जाता है तो इसे भी विधेयक में तब्दील करना होगा और संसद में पारित कराना होगा। वास्तविक प्रावधानों को बहाल करने के लिए दोनों ही कदमों का परिणाम एक है। लेकिन अध्यादेश का लाभ त्वरित परिणाम के रूप में होता है। यह रोष को तत्काल शांत करने में मदद करेगा।
दलित संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट के 20 मार्च के फैसले के जरिए कानून को कथित तौर पर हल्का किए जाने के खिलाफ दो अप्रैल को प्रदर्शन किए थे। कई स्थानों पर प्रदर्शनों ने हिंसक रूप ले लिया था जिसमें कई लोग मारे गए थे। विपक्षी दलों ने सरकार पर दलित रक्षा अधिकारों की रक्षा कर पाने में विफल रहने का आरोप लगाया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को आश्वस्त किया था कि उनकी सरकार अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति समुदायों पर अत्याचार रोकने वाले कानून को हल्का नहीं होने देगी। उन्होंने कहा था- मैं देश को आश्वस्त करना चाहता हूं कि हमारे द्वारा कठोर बनाए कानून को (अदालत के फैसले से) प्रभावित नहीं होने दिया जाएगा। हालांकि अभी तक कोई फैसला नहीं किया गया है और काफी कुछ सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा दायर की गई पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई के तरीके पर निर्भर करेगा।
अनुसूचित जाति/जनजाति अत्याचार निवारण कानून को लेकर शीर्ष अदालत ने पुलिस अधिकारियों के लिए इस बारे में नए दिशानिर्देश तैयार किए थे कि निर्दोष लोगों, खासकर सरकारी अधिकारियों को कानून के तहत झूठी शिकायतों से किस तरह सुरक्षा प्रदान की जाए। केंद्र ने शुक्रवार को अदालत में दायर अपने लिखित अभिवेदन में कहा कि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण कानून पर फैसले से इसके कड़े प्रावधान हल्के हुए हैं। इससे लोगों में गुस्सा पैदा हुआ है और लोगों के बीच सौहार्द की समझ बिगड़ने से देश को बड़ा नुकसान हुआ है। सरकार का रुख अदालत द्वारा अपने फैसले पर स्थगन से इनकार किए जाने के एक हफ्ते बाद आया है। अदालत ने स्थगन से इनकार करते हुए कहा था कि लगता है कि उसके फैसले के खिलाफ आंदोलन कर रहे लोगों ने फैसले को ठीक से नहीं पढ़ा है या निहित स्वार्थों ने उन्हें गुमराह किया है।