हाथों में ऑक्सीजन सिलिंडर लिए डॉक्टर के पीछे घूमते रहे फिर भी नही हुआ इलाज और मासूम की गई जान
बिहार में स्वास्थ्य सेवा में सुधार के चाहे कितने भी दावे किए जाए परंतु जो तस्वीर हम आपको दिखाने जा रहे है ये सच्चाई को दर्शाता है .इस सच्चाई में बिहार के स्वास्थ्य सेवा की बदहाल स्थिति उजागर हुई है। इसकी कीमत एक मासूम को अपनी जान देकर चुकानी पड़ी है।
राज्य के सबसे बड़े अस्पताल पीएमसीएच (पटना मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल) जहाँ लोग इस विश्वास के साथ आते हैं कि वहाँ के डॉक्टर भगवान का दूसरा रूप हैं और वो मरीज को जल्द से जल्द ठीक कर देंगे . इसी बड़े अस्पताल में लपरवाही का गंभीर मामला सामने आया है। बच्चे का इलाज कराने के लिए उसके परिजन हाथों में ऑक्सीजन सिलेंडर थामे डॉक्टर के पीछे-पीछे घूमते रहे, लेकिन बच्चे का समय पर इलाज नहीं हो सका। परिजनों का आरोप है कि इलाज में देरी की वजह से बच्चे की मौत हो गई। अब इसके लिए जिम्मेदार डॉक्टरों पर कार्रवाई की मांग की जा रही है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, यह मामला अस्पताल के शिशु विभाग से जुड़ा है। बच्चे के परिजनों ने डॉक्टर पर लापरवाही बरतने का आरोप लगाया है। बता दें कि पीएमसीएच ऐसा अस्पताल है जहां पूरे प्रदेश के लोग बेहतर इलाज के लिए पहुंचते हैं, लेकिन राज्य के सबसे बड़े अस्पताल की हालत ही इतनी लचर है। कुछ दिनों पहले ही एक पिता को अपनी बीमार बेटी का इलाज कराने के लिए उसे गोद में लेकर अस्पताल का चक्कर काटना पड़ा था। बच्ची को ऑक्सीजन का मास्क भी लगा हुआ था। परिजनों को मजबूरन ऑक्सीजन सिलेंडर हाथ में लेकर चलना पड़ा रहा था।
लापरवाही के कारण अस्पताल में मौत की घटनाएं होने के बावजूद पीएमसीएच प्रबंधन के रवैये में कोई बदलाव नहीं आया है। बता दें कि पिछले साल नवंबर में डॉक्टरों की हड़ताल की कीमत भी मरीजों को ही चुकाना पड़ा था। इसमें 11 मरीजों की मौत हो गई थी। एक मरीज की मौत के बाद गुस्साए परिजनों ने जूनियर डॉक्टरों के साथ मारपीट की थी। इससे नाराज डॉक्टर हड़ताल पर चले गए थे। डॉक्टरों का कहना था कि इलाज में किसी तरह की लापरवाही नहीं बरती गई थी। हालांकि, पिछले कुछ दिनों में लापरवाही के की कई मामले सामने आ चुके हैं। इसके बावजूद इसमें सुधार के लिए ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा है। इससे मरीजों के साथ ही उनके परिजनों को भी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। पटना में एम्स भी खोला गया है, इसके बावजूद मरीजों को राहत नहीं मिली है। उन्हें बेहतर इलाज के लिए निजी अस्पतालों का ही रुख करना पड़ता है। एम्स ने काम करना भी शुरू कर दिया है।