चिपको आंदोलन के 45 साल पूरे होने पर गूगल ने दी सलामी, जानें क्या था चिपको आंदोलन


गूगल आज अपने होमपेज पर भारत के प्रसिद्ध चिपको आंदोलन को याद कर रहा है। आज चिपको आंदोलन की 45वीं वर्षगांठ भी है। इस मौके पर गूगल ने होमपेज पर एक सुंदर तस्वीर लगाई है। तस्वीर में 4 महिलाएं एक पेड़ को घेर कर खड़ी हैं। दरअसल तस्वीर में ये महिलाएं पेड़ को काटने से बचाने का सांकेतिक संदेश दे रही हैं। बता दें कि अविभाजित उत्तर प्रदेश के चमोली जिले (अब उत्तराखंड में) में 1973 में चिपको आंदोलन की शुरुआत हुई थी। जैसा कि नाम से ही पता चलता है ‘चिपको’ का मतलब पेड़ से चिपक जाना। तब पेड़ को कटने से बचाने के लिए लोग इसे घेर कर खड़े हो जाते थे। दरअसल 1962 में भारत-चीन के बीच जंग के बाद तत्कालीन उत्तर प्रदेश के चीन से लगे इलाकों में बड़े पैमाने पर विकास की गतिविधियां शुरू हुई। इसके लिए पेड़ों की कटाई जरूरी थी। उत्तराखंड के जंगलों की लकड़ियों की उत्तम क्वालिटी ने विदेशी कंपनियों को भी यहां आकर्षित किया। जब लकड़ियों की कटाई शुरू हुई तो स्थानीय लोगों ने इसका विरोध भी करना शुरू किया।

जंगल की लकड़ियां यहां के लोगों के रोजी-रोटी का आधार थीं। यहां के लोग भोजन और ईंधन दोनों के लिए ही जंगलों पर निर्भर थे। लड़कियों की कटाई का असर पर्यावरण पर भी पड़ा। 1970 में चमोली और आसपास के इलाकों में भयानक बाढ़ आई। लोगों ने इसका दोष लकड़ियों की अंधाधुंध कटाई, पर्यावरण ह्रास को दिया। इसके बाद इस समस्या पर गांधीवादी और पर्यावरणवादी चंडी प्रसाद भट्ट की नजर पड़ी। उन्होंने 1973 में मंडल गांव में चिपको आंदोलन की शुरुआत की। रोजी-रोटी और जमीन की समस्याओं से त्रस्त लोग जल्द ही इस आंदोलन से जुड़ गये। भट्ट गांव वालों के साथ जंगल में वहां पहुंचे जहां लकड़ियों की कटाई हो रही थी। लोग पेड़ों से लिपट गये और जंगल में पेड़ कटने बंद हो गये। आखिरकार सरकार को इस कंपनी का परमिट रद्द करना पड़ा। जल्द ही यह आंदोलन उत्तर भारत के दूसरे राज्यों में भी फैल गया।

 


पर्यावरणविद सुंदर लाल पटवा ने इस आंदोलन को और रफ्तार थी। उन्होंने नारा दिया कि पर्यावरण का संरक्षण ही अर्थव्यवस्था का आधार है। पटवा आजीवन वातावरण को स्वच्छ और शुद्ध बनाने के लिए काम करते रहे। उन्होंने हिमालय पवर्त श्रृंखला और वहां जंगलों को नुकसान पहुंचाने का पुरजोर विरोध किया। उन्हें अंतरराष्ट्रीय ख्याति मिली। उन्हीं की कोशिशों के बदौलत तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पेड़ों की अवैध कटाई पर रोक लगाई।

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