CJI के खिलाफ महाभियोग: नायडू ने नामंजूर किया नोटिस, दिग्गज कानूनविदों ने किया स्वागत
भाजपा नेता सुब्रहमण्यम स्वामी और प्रतिष्ठित कानूनविद एवं देश के पूर्व अटार्नी जनरल सोली सोराबजी ने प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा को ‘पद से हटाने’ के लिए कांग्रेस एवं अन्य दलों की ओर से दिये गये नोटिस को नामंजूर करने के राज्यसभा के सभापति एम. वेंकैया नायडू के फैसले का आज स्वागत किया।
नायडू ने पर्याप्त आधार ना होने का हवाला देते हुए नोटिस नामंजूर कर दिया। स्वामी ने प्रधान न्यायाधीश की अदालत कक्ष से बाहर निकलने के बाद ‘यह (नोटिस) जिस दिन दायर किया गया, उपराष्ट्रपति को उसी दिन इसे नामंजूर कर देना चाहिए था क्योंकि इसमें दिये गये कारणों को सार्वजनिक कर दिया गया था।’’ उन्होंने कहा, ‘‘चाहे जैसे भी हो, यह एक अच्छा फैसला है।’’ वहीं सोराबजी ने नायडू के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि उन्होंने सही तरह से विचार करके निर्णय लिया है। सोराबजी ने कहा कि सभापित ने गुण दोष के आधार पर नोटिस नामंजूर कर दिया और फैसला लेने से पहले कानूनी विशेषज्ञों से विचार विमर्श किया।
उन्होंने कहा, ‘‘उपराष्ट्रपति ने अपना दिमाग लगाया। उन्होंने कानूनी विशेषज्ञों से विचार विमर्श किया और फैसला लिया। हम नहीं चाहते थे कि मामला अनिश्चितकाल तक बना रहे।’’ सोराबजी ने एक टीवी चैनल से कहा, ‘‘उन्होंने (नायडू)मामले का निरीक्षण किया और उसमें गुण दोष का आधार एवं पद से हटाए जाने का आधार नहीं पाया और इसलिए नोटिस नामंजूर कर दिया।’’ यह पूछे जाने पर कि अगर विपक्ष नायडू के फैसले को चुनौती देने के लिए उच्चतम न्यायालय का रूख करें तो आगे क्या प्रक्रिया होगी, सोराबजी ने कहा कि उन्हें नहीं लगता कि याचिका सफल होगी।
सोराबजी ने कहा, ‘‘मुझे रिट याचिका (नायडू के फैसले को चुनौती देने से जुड़ी) सफल होने की संभावनाएं नहीं दिखती।’’ वरिष्ठ अधिवक्ता एवं संप्रग सरकार के कार्यकाल में अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल रहे हरिन रावल ने इस मुद्दे पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। उल्लेखनीय है कि कांग्रेस सहित सात दलों ने न्यायमूर्ति मिश्रा को पद से हटाने के प्रस्ताव के लिये महाभियोग चलाने का नोटिस सभापति दिया था। नोटिस में न्यायमूर्ति मिश्रा के खिलाफ पांच आधार पर कदाचार का आरोप लगाते हुये उन्हें ‘प्रधान न्यायाधीश के पद से हटाने की प्रक्रिया’ शुरू करने की मांग की थी।
अधिकारी ने बताया कि नायडू ने देश के शीर्ष कानूनविदों से इस मामले के सभी पहलुओं पर विस्तार से विचार विमर्श करने के बाद यह फैसला लिया है।
उन्होंने बताया कि नोटिस में न्यायमूर्ति मिश्रा पर लगाये गये कदाचार के आरोपों को प्रथम दृष्टया संविधान के अनुच्छेद 124 (4) के दायरे से बाहर पाये जाने के कारण इन्हें जांच के योग्य नहीं माना गया। राज्यसभा सचिवालय नोटिस देने वाले सदस्यों को इसे स्वीकार नहीं करने के नायडू के फैसले के मुख्य आधारों से अवगत करायेगा।