अब भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता ने कराई किरकिरी, टीवी शो में नहीं गा सके ‘वंदे मातरम्’
भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेताओं द्वारा राष्ट्र गीत वंदे मातरम् न गाने की कड़ी में नया नाम पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता गोपाल कृष्ण अग्रवाल को जुड़ गया है। एक निजी टीवी चैनल के टॉक शो में जब अग्रवाल से एंकर ने राष्ट्र गीत सुनाने के लिए कहा तो पहले तो वो झिझके फिर दावा किया कि वो इसे पूरा सुना सके हैं और उन्हें बचपन से ही राष्ट्रगीत आता है। अग्रवाल ने कहा, “बिल्कुल सुना सकते हैं। वंदे मातरम् हम बचपन से गाते आ रहे हैं। मैं भारती विद्याभवन से पढ़ा हुआ हूँ वहाँ भी ये चलता था।” इसके बाद अग्रवाल ने वंदे मातरम् की पहली चार पंक्तियाँ सुनाकर चुप हो गये। जब टीवी एंकर ने उनसे राष्ट्रीय गीत के रूप में स्वीकृत आठ पंक्तियों की बाकी चार पंक्तियां सुनाने को कहा तो अग्रवाल आनाकानी करने लगे।
अग्रवाल ने कहा कि वंदे मातरम् गाने के लिए उन्हें खड़ा होना पड़ेगा। एंकर ने कहा कि वो चाहें तो खड़े होकर गा सकते हैं। अग्रवाल ने फिर खड़े होकर भी इस गीत को गाया तो केवल पहली चार लाइनें ही गा सके। कार्यक्रम में शामिल सपा प्रवक्ता अनुराग भदौरिया बीजेपी पर दोहरा मानदंड अपनाने का आरोप लगाया। अग्रवाल ने कहा कि आप पहला शब्द बताएंगे तो वो आगे गा सकते हैं। इससे पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार की जीवनी लिख चुके राकेश सिन्हा भी एक टीवी शो में वंदे मातरम् गाने के सवाल पर असहज हो गये थे। सिन्हा से पहले बीजेपी नेता नवीन कुमार भी एक टीवी शो में वंदे मातरम् की पहली चार पंक्तियां भी नहीं सुना सके थे। सोशल मीडिया पर बीजेपी और उसके नेताओं की इसे लेकर खिंचाई होती रही है। उत्तर प्रदेश के बीजेपी शासित कई नगर निगमों वंदे मातरम् गाना अनिवार्य बनाने की मांग की जा रही है। कुछ बीजेपी नेता वंदे मातरम् न गा पाने वालों को पाकिस्तान भेजने की बात कर चुके हैं।
वंदे मातरम् बांग्ला लेखक वंकिम चंद्र चटर्जी के उपन्यास आनन्द मठ (1882) में एक पात्र भवानन्द द्वारा गाया गया गीत है। राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम में यह गीत बेहद लोकप्रिय हुआ। आजादी के बाद 34 पंक्तियों के इस गीत के पहले तो श्लोक (आठ पंक्तियां) ही राष्ट्रगीत के तौर पर स्वीकार की गईं। वहीं रविंद्र नाथ टैगोर के लिखे “जन मन गण अधिनायक” को राष्ट्र गान चुना गया।