पुरी के जगन्नाथ मंदिर के प्रबंधन की निगरानी सुप्रीम कोर्ट ने करने का लिया फ़ैसला

भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक और बड़े मंदिर के प्रबंधन में दखल देने का फैसला किया है। इस बार नंबर ओडिशा के जगन्नाथ पुरी मंदिर का है। सुप्रीम कोर्ट इससे पहले भी केरल के मशहूर और धनी पद्मनाभ स्वामी मंदिर का प्रबंधन बहुत कुछ अपने हाथों में ले चुका है। सुप्रीम कोर्ट मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित महाकालेश्वर मंदिर के प्रबंध के लिए भी निर्देश जारी कर चुका है। कोर्ट के हस्तक्षेप का कट्टर हिंदू संगठनों ने व्यापक विरोध किया है। कोर्ट इस बात पर सहमत है कि वह एक मंदिर के प्रबंधन में सुधार के बाद दूसरे मंदिर की ओर रुख करेगा। हालांकि इस संबंध में इससे बड़ा मुकदमा जिसमें हिंदू मंदिरों का नियंत्रण राज्य को सौंपने की बात कही गई है, अभी लंबित पड़ा हुआ है।

लंबित हैं कई याचिकाएं: साल 2012 में स्व. दयानंद सरस्वती ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। उन्होंने हिंदू मंदिरों पर सरकार के नियंत्रण की संवैधानिकता को चुनौती दी थी। ये बात भी याचिका में कही गई थी कि सिर्फ हिंदू मंदिरों पर ही नियंत्रण क्यों जबकि अन्य धर्मों को अपनी संस्थाओं का प्रबंधन करने की अनुमति दी गई है। ये मामला पिछले एक साल से अपने आखिरी दौर में चल रहा है।

इसलिए लिया गया संज्ञान: पिछले हफ्ते 12 शताब्दी के जगन्नाथ मंदिर में श्रद्धालुओं के कथित शोषण की खबरें आने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लिया था। कोर्ट ने सरकार को मंदिर के प्रबंधन के विषय में कुछ दिशा—निर्देश जारी किए थे। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अपनी मदद के लिए वरिष्ठ वकील गोपाल सुब्रमण्यम को न्याय मित्र बनाया है।

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भरोसेमंद सलाहकार हैं सुब्रमण्यम: बता दें कि सुब्रमण्यम पद्मनाभ स्वामी मंदिर मामले में भी न्याय मित्र हैं। वह भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के प्रबंधन में प्रशासकीय सुधार के लिए भी सुप्रीम कोर्ट की मदद कर रहे हैं। पद्मनाभ स्वामी मंदिर और बीसीसीआई दोनों ही मामलों में कार्य प्रगति पर है। एक और संयोग ये भी है कि कोर्ट ने एक ही रिटायर्ड नौकरशाह पूर्व सीएजी विनोद राय को दोनों ही मामलों को देखने की जिम्मेदारी सौंपी है।

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