दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला- अब प्रादेशिक सेना में भी भर्ती हो सकती हैं महिलाएं

दिल्ली उच्च न्यायालय ने प्रादेशिक सेना में महिलाओं की भर्ती का मार्ग प्रशस्त करते हुए शुक्रवार को कहा कि महिलाओं प्रतिबंध लगाने वाला कोई भी प्रावधान संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकारों के खिलाफ है। प्रादेशिक सेना नियमित सेना के बाद दूसरी पंक्ति की रक्षा सेना है। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और न्यायमूर्ति सी हरि शंकर की पीठ ने कहा कि प्रादेशिक सेना अधिनियम की धारा 6 में ‘कोई भी व्यक्ति’ शब्दों में पुरुष और महिलाएं दोनों शामिल हैं। अदालत ने यह भी कहा कि अधिनियम का कोई भी प्रावधान जो प्रादेशिक सेना में महिलाओं की भर्ती पर रोक या प्रतिबंध लगाता है, वह संविधान के तहत प्रदत्त समता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है।

उच्च न्यायालय ने वकील कुश कालरा की जनहित याचिका पर यह फैसला दिया। इस याचिका में प्रादेशिक सेना में महिलाओं की नियुक्ति के मामले में भेदभाव का आरोप लगाया गया है। प्रादेशिक सेना में अभिनेता मोहनलाल और क्रिकेटर कपिल देव तथा एम एस धोनी मानद सदस्य हैं जिनके पास वरिष्ठ पद हैं। याचिकाकर्ता ने प्रादेशिक सेना में महिलाओं की नियुक्ति नहीं करके उनके प्रति संस्थागत भदेभाव का आरोप लगाया गया था। प्रादेशिक सेना एक ऐसा संगठन है जिसमें स्वयंसेवकों को आपात स्थिति के समय देश की रक्षा करने के लिए सैन्य प्रशिक्षण दिया जाता है।

उल्लेखनीय है कि कुछ दिनों पहले भारतीय सेना ने बड़ा बदलाव करते हुए फैसला लिया था कि अब पुरुष सैनिकों के साथ महिला जवान भी लड़ाई के मैदान में नजर आएंगी। आर्मी चीफ जनरल बिपिन रावत ने कहा था कि महिलाओं को लड़ाकू भूमिका में लाने की प्रक्रिया पर तेजी से काम चल रहा है। उन्होंने कहा था कि शुरुआत में महिलाओं को मिलिट्री पुलिस में भर्ती किया जाएगा। दुनियाभर में ऐसे चुनिंदा देश हैं जहां पर महिलाओं को सेना में लड़ाई के मौर्चे पर मौका दिया जाता है। इससे पहले भारत में भी सिर्फ पुरुष सैनिकों को लड़ाई की भूमिका में रखा गया था।

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