सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद सदियों में पहली बार महाकाल को सूती कपड़े से ढ़ककर हुई भस्म आरती
उज्जैन स्थित विश्व प्रसिद्ध महाकालेश्वर मंदिर के ज्योतिर्लिंग को क्षरण से रोकने के शीर्ष अदालत के निर्देशों के बाद सर्दियों में पहली बार यहां प्रात:काल होने वाली भस्म आरती के दौरान ज्योतिर्लिंग को सूती कपड़े से पूरा ढ़का गया। शुक्रवार को एक याचिका की सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने भगवान महाकालेश्वर मंदिर में स्थित देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक के क्षरण को रोकने के लिए इसकी पूजा-अर्चना संबंधी नए निर्देश जारी किए। इनमें मुख्यतौर पर ज्योतिर्लिंग की सुबह होने वाली भस्म आरती के वक्त इसे सूती कपड़े से पूरा ढंकने तथा इसके जलाभिषेक के लिए प्रति दर्शनार्थी केवल 500 मिलीलीटर आर ओ (रिवर्स ओसमोसीस) पानी का इस्तेमाल करने के निर्देश शामिल हैं।
महाकालेश्वर मंदिर के प्रशासक प्रदीप सोनी ने कहा, ‘‘हमने उच्चतम न्यायालय के निर्देश तुरंत प्रभाव से लागू कर दिए हैं। सदियों से यहां पवित्र राख से की जाने वाली भस्म आरती के दौरान ज्योतिर्लिंग को आधा कपड़े से ढ़का जाता रहा, लेकिन उच्चतम न्यायालय के निर्देश के बाद अब शनिवार से भस्म आरती के दौरान ज्योतिर्लिंग को पूरा कपड़े से ढ़का जा रहा है।’’ सोनी ने कहा कि अब प्रत्येक दर्शनार्थी को केवल 500 मिलीलीटर आरओ पानी ही जलाभिषेक के लिए उपलब्ध कराया जा रहा है तथा शाम 5 बजे के बाद ज्योतिर्लिंग की केवल शुष्क पूजा की ही अनुमति दी गई है।
महाकालेश्वर मंदिर के पुजारी आशीष पुजारी ने कहा कि यह सदियों पुरानी परम्परा थी, ‘‘भस्म आरती सदियों पुरानी परम्परा है और पहली दफा सुबह होने वाली यह आरती ज्योतिर्लिंग या शिवलिंग को पूरी तरह कपड़े से ढ़क कर की गई। यह उपाय शिवलिंग को क्षरण से बचाने के लिए किए जा रहे हैं।’’ महाकाल मंदिर के ज्योतिर्लिंग को क्षरण से रोकने के लिए दायर की गई एक याचिका की सुनवाई करते हुऐ उच्चतम न्यायालय ने इस वर्ष 25 अगस्त को इसकी जांच के लिए विशेषज्ञों की एक समिति गठित की थी।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के सदस्यों और अन्य विशेषज्ञों वाली इस समिति ने महाकालेश्वर मंदिर के ज्योतिर्लिंग का अध्ययन करने के बाद शीर्ष अदालत को इसके आकार में होने वाले क्षय की संभावित दर और इससे बचाव के उपाय सुझाए थे। विशेषज्ञ समिति के सुझावों के आधार पर मंदिर प्रबंधन समिति ने ज्योतिर्लिंग की पूजा अर्चना के संबंध में एक प्रस्ताव तैयार कर शीर्ष अदालत में पेश किया था। 27 अक्टूबर की सुनवाई में उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश अरूण मिश्रा और एल नागेश्वरा राव की युगलपीठ ने इस प्रस्ताव के 8 बिन्दुओं को स्वीकृति देते हुए ज्योतिर्लिंग की पूजा-अर्चना के संबंध में नए निर्देश जारी किए।
इन निर्देशों के तहत जलाभिषेक के लिए प्रत्येक दर्शनाथी को केवल 500 मिलीलीटर आरओ जल उपलब्ध कराने, भस्म आरती के दौरान ज्योतिर्लिंग को पूरा कपड़े से ढ़कने, प्रतिदिन शाम पांच बजे के बाद ज्योतिर्लिंग को साफ कर इसके आसपास वातावरण शुष्क रखने और इसकी शुष्क पूजा करने तथा प्रत्येक दर्शनाथी को केवल 1.25 लीटर दूध या पंचामृत (शहद, दुध, दही, घी, तरल गुड़) से अभिषेक करने के निर्देश दिए गए हैं।
इससे पहले सामान्य तौर पर शक्कर से रगड़कर की जाने वाली ज्योतिर्लिंग की पूजा को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया गया है। इसके स्थान पर खांडसारी (शक्कर का चुरा) का उपयोग किया जा सकता है। नए निर्देशों के मुताबिक बिल्व पत्र और फूल ज्योतिर्लिंग के केवल ऊपरी हिस्से पर ही रखे जा सकते हैं ताकि इसके पत्थर को बराबर हवा लगती रहे। सोनी ने बताया कि मंदिर परिसर में एक नया सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट एक साल के अंदर स्थापित किया जायेगा तथा मंदिर के गर्भगृह का वातावरण नमी मुक्त एवं शुष्क रखने के लिए ड्रायर और पंखे लगाए जाएंगे।