Dussehra 2017: जानिए, क्यों नवरात्रि के दसवें दिन मनाया जाता है दशहरा, क्या है इसकी पौराणिक कथा
हिंदू कैलेंडर के अनुसार दशहरा अश्विन माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है जो आमतौर पर सितंबर या अक्टूबर महीने के दौरान आता है। इस पर्व को भारत में बहुत ही उत्साह के साथ से मनाया जाता है, हर राज्य में इसे विभिन्न-विभिन्न पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ इस पर्व को मनाने की प्रथा है। दशहरा नौ दिनों से जारी दुर्गा पूजा समारोह की समाप्ति का प्रतीक है। दक्षिण भारत में इस दौरान देवी दुर्गा और देवी चामुंडेश्वरी की पूजा की जाती है, जिन्होंने लोगों की रक्षा के लिए असुरों की सेना को चामुंडा की पहाड़ियों में युद्ध कर पराजित किया था। इस दौरान देवी दुर्गा के साथ देवी लक्ष्मी, देवी सरस्वती, भगवान गणेश और कार्तिकेय की पूजा भी की जाती है। वहीं दशहरा के दिन लोग मां दुर्गा की मूर्तियों का विधि-विधान के साथ विसर्जन भी करते हैं।
दशहरा का महत्व-
दशहरा का पर्व मनाने के पीछे की मूल कथा भगवान श्रीराम से जुड़ी हुई है। 14 वर्ष के वनवास में रावण द्वारा सीता का हरण कर लिया गया था। मां सीता को बचाने के लिए और अधर्मी रावण का नाश करने के लिए भगवान राम ने रावण के साथ कई दिनों तक युद्ध किया। शारदीय नवरात्रों के दिनों भगवान राम ने शक्ति की देवी दुर्गा की अराधना लगातार नौ दिनों तक की इसके बाद उन्हें मां दुर्गा का वरदान मिला। इसके पश्चात मां दुर्गा के सहयोग से राम ने युद्ध के दसवें दिन रावण का वध कर उनके अत्याचारों से सभी को बचाया। इसी परम्परा को मानते हुए हर साल रावण, मेघनाथ और कुम्भकर्ण को बुराई का प्रतीक मानकर इनके पुतले दशहरे के दिन जलाते हैं।
इसके साथ ही पौराणिक मान्यता के अनुसार नौ दिनों तक महिषासुर और असुरों की सेना से मां दुर्गा ने लगातार युद्ध किया और अंत में दसवें दिन महिषासुर का वध कर विजय प्राप्त की थी। इसलिए इस त्योहार को बुराई पर अच्छाई का का प्रतीक माना जाता है और इस दिन बुराई का विनाश करने का प्रण लेते हैं।
दशहरा एक हंसी खुशी का पर्व है, शारदीय नवरात्र की स्थापना पर कलश और मूर्ति स्थापना का विसर्जन भी इसी दिन किया जाता है। वैसे दशहरा एक प्रतीक पर्व है दशहरे के पुतले को बुराई और समस्त प्रकार की अमानवीय प्रवृति का प्रतीक मानकर जलाया जाता है। जिससे हमारा समाज इस प्रकार की बुराइयों विक्रतियो से मुक्त हो सके। सच्चे अर्थो में तभी दशहरा मनाने का महत्व सार्थक सिद्ध होगा। अश्विन की दसवीं तिथि को दस सिर के रावण को सच में जलाना है तो काम, क्रोध, लोभ, मोह मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी इन दस बुरी प्रवार्तियो और आदतों का सर्वप्रथम हमे त्याग करना होगा। तभी धर्म की अधर्म पर विजय होगी।