आह से निकला आखिरी दिन

(30 अगस्त, 1923- 14 दिसंबर, 1966)
‘तीसरी कसम’ गीतकार शैलेंद्र (शंकरदास केसरीलाल) की बनाई पहली और आखिरी फिल्म थी, जो उनके लिए ‘आह से निकला आखिरी गान’ बन गई थी। इसने शैलेंद्र से वह सब करवाया, जिसे वह सख्त नापसंद करते थे। इस फिल्म ने उन्हें राज कपूर के एहसानों तले और दबाया। साथ ही फिल्म के निर्देशक बासु भट्टाचार्य और लेखक फणीश्वरनाथ रेणु से बातचीत बंद करवाई। 1966 में रिलीज हुई फिल्म बॉक्स आॅफिस पर बुरी तरह फेल हुई और इसके सदमे से इसी साल शैलेंद्र ने उस दिन दुनिया छोड़ी, जिस दिन राज कपूर 42वां जन्मदिन मना रहे थे।

पहली फिल्म बनाने जा रहे उस फिल्म निर्माता की मानसिक दशा का अंदाजा लगाइए जो कई तकलीफें उठा कर फिल्म की शूटिंग पूरी करके राहत की सांस ले ही रहा हो कि अनुभवी लोग बताएं कि फिल्म की लंबाई बहुत कम है। इसमें दो गाने डालने के साथ बीसेक दिन की शूटिंग और करनी पड़ेगी। आर्थिक संकट में फंसा निर्माता क्या करेगा? अपनी पहली फिल्म ‘तीसरी कसम’ बना रहे शैलेंद्र भी इस स्थिति से गुजरे। तब बुरी तरह से टूट चुके शैलेंद्र ने बच्चू भैया (अपने साले संतोष ठाकुर) के हाथ में पार्वती सदन की चाभी रख दी, यह सोचकर कि फिल्म रिलीज के बाद सब ठीक हो जाएगा, मगर हुआ नहीं।

फिल्म बनने के दौरान ही निर्देशक बासु भट्टाचार्य से उनकी बोलचाल बंद हो गई थी। उस बासु से, जिसने उनके हाथ में रेणु की ‘मारे गए गुलफाम’ कहानी रखी थी और शैलेंद्र ने इस पर फिल्म बनाना तय किया था। बासु बिमल राय के चौथे नंबर के सहायक थे और बिमल राय की ‘परख’ के संवाद लिख रहे शैलेंद्र के घर संवाद लेने आते थे। जब बासु ने बिमल राय की बेटी से पहले मोहब्बत और बाद में शादी की तो राय ने उन्हें माफ नहीं किया। नतीजा शैलेंद्र को भी भुगतना पड़ा। वह राय की ‘बंदिनी’ के गाने लिख रहे थे और एक गाना बाकी रह गया था। उन्हें फिल्म छोड़नी पड़ी। राय ने तब तब गुलजार से ‘मोरा गोरा अंग लई ले…’ लिखवाया, जो तब गीतकार नहीं बनना चाहते थे।

‘तीसरी कसम’ एक रुपया लेकर राज कपूर ने साइन की थी। दरअसल, शैलेंद्र की हिम्मत नहीं हुई थी उन्हें साइन करने की क्योंकि कभी पीने के दौरान उनसे राज ने कहा था कि वे बाहर की फिल्में नहीं करना चाहते लेकिन उनके सेक्रेटरी रमन जब लाखों रुपए उनके सामने रख देते हैं, तो वह न नहीं कह पाते। लेकिन इनसान हमेशा एक जैसा नहीं रहता। उन्हीं राज कपूर ने ‘संगम’ रिलीज के दौरान मद्रास में पीने के बाद शैलेंद्र से उनकी फिल्म के बारे में पूछा और एक रुपया लेकर फिल्म साइन कर ली थी। जीवन भर खुद्दार रहे शैलेंद्र के दिल को यह बात छू गई थी।

इसके बाद मुंबई आकर उन्होंने ‘तीसरी कसम’ में राज कपूर और नूतन (बाद में नूतन के गर्भवती होने के कारण उनकी जगह पर वहीदा रहमान को लिया गया था) के नाम की घोषणा कर दी। ‘तीसरी कसम’ से रेणु के साथ शैलेंद्र के रिश्तों में अबोलापन आया गया था, क्योंकि फिल्म की पटकथा लिखने के दौरान शैलेंद्र रेणु की पटकथा लेखन की क्षमता को आंक चुके थे। फिर रेणु ने अपनी ‘मैला आंचल’ के अधिकार एक अन्य निर्माता को भी बेच रखे थे और शैलेंद्र को भी। लिहाजा जब दूसरी फिल्म के रूप में शैलेंद्र ने ‘मैला आंचल’ की घोषणा की तो उस निर्माता ने उन्हें नोटिस भिजवाया और शैलेंद्र रेणु को देखते रहे।

राज कपूर ने अपनी फिल्म ‘आग’ के लिए शैलेंद्र की रचना ‘जलता है पंजाब’ मांगी थी, जिस पर कविराज (राज कपूर उन्हें यही कहते थे) ने इनकार कर दिया था। वक्त ने पत्नी के गर्भवती होने पर उन्हीं शैलेंद्र को पांच सौ रुपए मांगने राज कपूर के पास पहुंचा दिया था। ‘तीसरी कसम’ की शूटिंग खत्म होने के बाद जब लंबाई कम निकली, तो आर्थिक संकटों में घिरे शैलेंद्र की मदद करने राज कपूर और मुकेश आगे आए थे। उन्होंने बागडोर अपने हाथों में ली और आरके स्टूडियो से फिल्म निर्माण की तैयारी होने लगी। मुकेश उसका कामकाज देखते थे। दोनों ही अनुभवी थे। उनकी कोशिशों से फिल्म बनी। वह चली नहीं मगर उसे सर्वश्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार मिला।

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