अदालत ने कहा- बढ़ती असहिष्णुता पर रोक लगाने की जरूरत, बर्बरता का युग न लौटे
दिल्ली की एक अदालत ने कहा कि अपने विचारों को दूसरों की जिंदगी से ज्यादा तरजीह देने की वजह से लोगों के बीच बढ़ती असहिष्णुता पर अंकुश लगाए जाने की जरूरत है। अदालत ने कहा कि ऐसी घटनाएं बर्बरता के युग के लौटने की याद दिलाती हैं। अदालत ने राजनीतिक विरोध के चलते 2007 में पड़ोस में रहने वाले एक व्यक्ति और उसके बेटे पर हमले के मामले में एक सरकारी कर्मचारी समेत चार दोषियों को तीन वर्ष के कठोर कारावास की सजा सुनाई है। शिकायत के मुताबिक दोषी तब कथित तौर पर भाजपा सांसद रमेश विधुड़ी के कार्यकर्ता थे।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश लोकेश कुमार शर्मा ने कहा, ‘‘यह मामला इस शहर में रहने वालों के बीच बढ़ती असहिष्णुता का स्पष्ट उदाहरण है। अपनी कथित राजनीतिक विचारधारा से जुड़े छोटे से मुद्दे पर भी लोग अपने पड़ोसियों तक पर हमले से नहीं हिचकते भले ही इसमें दूसरे पक्ष की जान ही चली जाए। उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।’’ न्यायाधीश ने कहा कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में एक व्यक्ति किसी भी राजनीतिक विचारधारा को मानने के लिये स्वतंत्र है, लेकिन इससे उसे यह अधिकार नहीं मिल जाता कि वह दूसरों को भी अपनी मान्यता के सामने झुकने के लिए मजबूर करे।
अदालत ने दोषी विजय कुमार, ऋषि पाल, अशोक और सतबीर को तीन साल की कैद की सजा सुनाई है। अभियोजन के मुताबिक 4 अगस्त 2007 को चारों आरोपियों ने अपने पड़ोसी पीड़ित राजू की हत्या के इरादे से उस पर डंडों और तलवार से वार किया। इस हमले में राजू का बेटा निलेश भी गंभीर रूप से घायल हो गया था।