माही : सुर बदला, लय बरकरार

महेंद्र सिंह धोनी फिर चर्चा में हैं। पहले कैप्टन कूल के तौर पर, पिछले डेढ़ साल से रनों के लिए संघर्षरत रहने के कारण और अब पारी को संवारते हुए मैच जिताने वाले रोल में। उनके प्रदर्शन को लेकर 2016 में उनके प्रशंसक भी आलोचक बन गए थे। एक समय तो ऐसा लगने लगा कि उन्हें जबरन रिटायरमेंट की तरफ धकेले जाने की मुहिम शुरू हो गई है। टीम इंडिया में धोनी की उपयोगिता को लेकर सवाल उठाने वालों में भारत में अंडर-19 क्रिकेट टीम के कोच राहुल द्रविड़ भी थे। चंद माह पूर्व द्रविड़ ने कह दिया था कि चयनकर्ताओं को जल्द फैसला लेना चाहिए कि धोनी और युवराज सिंह 2019 में होने वाले क्रिकेट विश्वकप का हिस्सा होंगे या नहीं। इससे चयनकर्ताओं पर भी दबाव बना। चयन समिति के अध्यक्ष एमएसके प्रसाद ने पहले तो कह दिया कि सही समय पर ही फैसला किया जाएगा। लेकिन जब श्रीलंका दौरे के लिए वनडे टीम घोषित हुई तो उन्हें अल्टीमेटम-सा मिल गया कि टीम इंडिया में रहना है तो दम दिखाओ। दम तो धोनी ने दिखाया लेकिन क्या इस तरह उनको परख के लिए कहना उचित था।

खैर, धोनी को कप्तान और कोच दोनों से तारीफ मिली। कोच रवि शास्त्री तो इस कदर गदगद हैं कि उन्होंने धोनी को सचिन तेंदुलकर, सुनील गावस्कर और कपिल देव जैसे महान खिलाड़ियों की श्रेणी में रख दिया है। साथ ही साफ कर दिया कि ‘माही’ 2019 क्रिकेट विश्वकप खेलेंगे। उनको टीम से निकालने की कल्पना भी नहीं की जा सकता। यह सब बदला है धोनी की पिछली सात-आठ पारियों को देखते हुए। इसमें भले ही उनका विस्फोटक अंदाज नहीं दिखा, पर टीम को संकट से निकालने के लिए उन्होंने जैसी जिम्मेदाराना पारियां खेलीं, उससे टीम प्रबंधन खुश है।

दरअसल पिछले एक दशक से हम टीम में ‘माही’ को बेहतरीन विकेटकीपर के रूप में कम, मैच जिताऊ बल्लेबाज के रूप में ज्यादा देखते रहे हैं। हम उनसे हर मैच में अब भी हेलिकॉप्टर शाट्स और चौके-छक्कों की बरसात देखना चाहते हैं। धोनी अब 36 साल के हैं। हो सकता है अब उनके रिफ्लेक्सेस धीमे हुए हों, उनकी प्राहरक क्षमता कमजोर पड़ी हो। इसी के मद्देनजर उन्होंने अपनी बल्लेबाजी शैली को बदलने की कोशिश की है। अपने अनुभव और कौशल से धोनी साथी बल्लेबाज को प्रेरित कर उनका आत्मविश्वास को बढ़ा रहे हैं।इसी के चलते श्रीलंका के खिलाफ सीरीज के तीसरे वनडे में उन्होंने भुवनेश्वर कुमार के साथ अटूट रिकार्ड शतकीय साझेदारी से टीम को जीत दिलाई। यह साझेदारी तब बनी जब लक्ष्य से 100 रन पहले ही सात विकेट गंवाकर भारतीय टीम संकट में थी। श्रीलंका के खिलाफ पांच में से चार पारियों में वह नाटआउट रहे। जीत धोनी ने वेस्ट इंडीज दौरे पर भी दिखाई थी लेकिन सुर्खियों में रही उनकी धीमी पारी जिस वजह से टीम इंडिया को हार मिली। चेन्नई में आस्ट्रेलिया के खिलाफ पहले वनडे में भी उन्होंने टीम इंडिया को दयनीय स्थिति से निकालते हुए मजबूती दी। 79 रन की उनकी पारी हार्दिक पांड्या की 83 रनों की आक्रामक पारी से कम महत्त्वपूर्ण नहीं थी। एक बार फिर भुवनेश्वर कुमार को उन्होंने उपयोगी पारी खेलने के लिए प्रेरित किया। साथ ही उन्होंने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में हाफ सेंचुरियां बनाने का शतक पूरा किया।

धोनी की बल्लेबाजी बोनस है। लेकिन हम उन्हें कुशल और चतुर विकेटकीपर के रूप में क्यों नहीं देखते? धोनी अभी भी सर्वश्रेष्ठ विकेटकीपर हैं। वनडे में स्टंप करने की सेंचुरी करने वाले वह दुनिया के इकलौते विकेटकीपर हैं। उनकी विकेटकीपिंग भी मैच की तस्वीर बदल सकती है। स्टंपिंग के साथ-साथ रन आउट करने का उनका कौशल भी गजब का है।एक और खिलाड़ी है युवराज सिंह जिनके एकदिनी करिअर पर भी तलवार लटकी है। फिलहाल वह फिटनेस कारणों से टीम से बाहर हैं। उम्मीद की जाती है कि उनकी भी वापसी होगी। फिटनेस कारणों से सुरेश रैना भी टीम से बाहर हुए हैं। लेकिन बेहतरीन फील्डर, उपयोगी स्पिन गेंदबाज और आकर्षक बल्लेबाज होने के कारण उनकी वापसी की राह अभी बंद नहीं हुई है।

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