DMRC को कोर्ट ने लगाई फटकार, कहा- सुविधा न देने की नीति पश्चिम से लाएं हैं क्या?

दिल्ली हाई कोर्ट ने मेट्रो स्टेशनों के अंदर यात्रियों को नि:शुल्क पेयजल और शौचालय की सुविधाएं मुहैया नहीं कराने पर सोमवार को दिल्ली मेट्रो रेल निगम (डीएमआरसी) की जमकर खिंचाई की और पूछा कि क्या उसे ‘मानवीय समस्याओं की समझ नहीं रह गई है।’ न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट और एके चावला के पीठ ने कहा कि क्या आप पानी और शौचालय की सुविधा मुहैया नहीं कराने की नीति पश्चिम से लेकर आए हैं? यहां ट्रैफिक का हाल देखिए। करोड़ों लोग मेट्रो में सफर करते हैं और यदि किसी को मेडिकल समस्या हो जाए तो क्या होगा? वह कहां जाएगा? जब तक वह स्टेशन से बाहर आएगा, तब तक काफी देर हो चुकी होगी। इस नीति के पीछे कौन सी सोच है? पीठ ने कहा कि आप दुनिया में कहीं भी चले जाइए, मेट्रो स्टेशनों में शौचालय होते हैं।

लंदन में ट्रैफिक उतना अधिक नहीं है, जितना हमारे यहां है। हमें आंकड़े दिखाइए और ये सुविधाएं मुहैया नहीं कराने के कारण बताइए। आपकी यह नीति पिछले 14 साल से है। एकल पीठ के एक आदेश को चुनौती देने वाली अपील पर सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने यह टिप्पणी की। एकल पीठ ने आदेश दिया था कि मेट्रो में सफर करने वाले यात्री को नि:शुल्क पेयजल का अधिकार नहीं है। एकल पीठ के न्यायाधीश ने कहा था कि किसी व्यक्ति को पेयजल का अधिकार है, लेकिन नि:शुल्क पेयजल का अधिकार नहीं है।

कोर्ट ने इस अपील पर डीएमआरसी को नोटिस भी जारी किया और 9 मई तक जवाब तलब किया। 9 मई को ही मामले की अगली सुनवाई होगी। पीठ ने डीएमआरसी से कहा कि वह यात्रियों को नि:शुल्क पेयजल मुहैया नहीं कराने की नीति से जुड़े दस्तावेज पेश करे। याचिकाकर्ता कुश कालरा की ओर से पेश हुए वकील कुश शर्मा ने दलील दी कि पानी नि:शुल्क मुहैया कराया जाना चाहिए। उन्होंने साफ-सफाई का भी मुद्दा उठाया और कहा कि सभी मेट्रो स्टेशनों में शौचालय और कूड़ेदान नहीं हैं।

 

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