पुलिस के डीएसपी रैंक के कुत्ते का ऐसा कारनामा कि तिरंगे में लपेट कर मिली आखिरी विदाई
उत्तर प्रदेश के बरेली में टाइगर को तिरंगे में लपेटकर अंतिम विदाई दी गई। दरअसल पुलिस में सेवाएं देने वाले काबिल कुत्ते को टाइगर नाम से बुलाया जाता था। टाइगर ने 14 वर्षों के कार्यकाल में इतना शानदार काम किया कि उसे किसी कुत्ते को मिलने वाली उच्चतम रैंक पुलिस उप अधीक्षक (डीएसपी) से नवाजा गया था। टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक पुलिसवाले इस कुत्ते ने 150 मामले अकेले सुलझाएं थे। 20 नाखूनों वाले लेब्राडॉर नस्ल के कुत्ते की खासियत यह थी कि जमीन, धरती, पानी, मैदान या जंगल में कहीं भी पुलिस को लाशों या आपराधिक घटनाओं के सबूत जुटाने हों, वह काम यह बखूबी करता था, ऐसा कुछ भी नहीं बचा जो उसने नहीं किया हो। इसलिए जब टाइगर ने 16 जनवरी को आखिरी सांस ली तो पुलिस ने उसका बकाया चुकता करने की ठानी और श्रद्धांजलि दी। टाइगर को तिरंगे में लपेटकर पारंपरिक गार्ड ऑफ ऑनर देते हुए दफनाया गया और उसके सहयोगियों और प्रशंसकों ने उसे अपनी आखिरी श्रद्धांजलि अर्पित की।
Remebrance: Tiger posted in Dog Squad of Distt Muzaffarnagar left us for his heavenly abode on 16th Jan.True to his name, he ferociously ‘preyed’ on criminals & made several crucial detections ‘pawsible’.He will always be immortal in our memories & inspire us. #HeroesOfUPPolice pic.twitter.com/YceNe8M8S4
— UP POLICE (@Uppolice) January 17, 2018
पुलिस महानिदेशक के कार्याल ने मुजफ्फरनगर के एसएसपी को फोन कर टाइगर के बारे में पूछताछ की और उसकी अंतिम विदाई की तस्वीरें लखनऊ भेजने के लिए कहा। पुलिस महानिदेशक के जनसंपर्क अधिकारी राहुल श्रीवास्तव ने बताया कि टाइगर के योगदान को देखते हुए और उसकी आत्मा की शांति के लिए उसके सम्मान में गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया।
टाइगर के संचालक सतीश चंद्र ने बताया कि उसे हैदराबाद की कैनाइन क्लब ऑफ इंडिया (सीसीआई) नाम की एक सरकारी एजेंसी से लाया गया था। यह एजेंसी देश भर में पुलिस और अर्धसैनिक बलों के लिए कुत्तों की सप्लाई करती है। उन्होंने कहा- ”वह 11 महीने का था जब हम उसे 26 जून 2003 को सीसीआई से लाए थे। पुलिस में ज्वाइन करने से पहले टाइगर को 36 हफ्तों के कठोर प्रशिक्षण से गुजारा गया था। मध्य प्रदेश के टेकनपुर में कुत्तों के लिए नेशनल ट्रेंनिंग सेंटर में टाइगर को प्रशिक्षण दिया गया था। जिसमें सीमा सुरक्षा बल के प्रतिष्ठित प्रतिष्ठानों के लिए ट्रैकिंग, विस्फोटकों का पता लगाने, नशीले पदार्थों का पता लगाने, खोज और बचाव कार्य करने और गार्ड प्रशिक्षण आदि कार्य शामिल थे।
लगभग एक दशक से अपराधों के लिहाज से संवेदनशील रहे जिले शामली और मुजफ्फरनगर पूरी तरह से टाइगर पर निर्भर थे। जरूरत पड़ने पर कई बार टाइगर को उसके कार्य क्षेत्र से बाहर अन्य जिलों में सेवाएं देने के लिए जाना पड़ता था। टाइगर के दुनिया को अलविदा कहने पर उसके साथी और सहयोगी खासे भावुक हैं।