फ्रांस में सौ साल से दफन दो भारतीय सैनिकों को नसीब होगी वतन की मिट्टी, लाया जाएगा शव

फ्रांस में दफन दो भारतीय सैनिकों के शव करीब 100 साल बाद अपनी मातृभूमि लौटेंगे। ये दोनों सैनिक पहले विश्व युद्ध में अंग्रेजी फौज की तरफ से लड़ने के लिए फ्रांस भेजे गये थे। 39 गढ़वाल राइफल्स रेजीमेंट के ये दोनों सैनिक युद्ध में शहीद हो गये लेकिन उनका शव देश वापस नहीं लाया गया। इन दोनों सैनिकों को डनकर्क से करीब 70 किलोमीटर दूर लावेनती नामक जगह पर ब्रिटिश और जर्मन सैनिकों के संग दफन किया गया था। सितंबर 2016 में हुई खुदाई में भारतीय सैनिकों के शव का पता चला था। सैनिकों के शव के पास गढ़वाल राइफल्स का चिह्न मिला।

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार अगले महीने गढ़वाल राइफल्स के ब्रिगेडियर समेत चार भारतीय सैन्य अफसर मृत सैनिकों की शिनाख्त करने के लिए फ्रांस जाएंगे। गढ़वाल राइफल्स के जवानों ने ब्रिटिश इंडियन आर्मी के लिए पहले और दूसरे विश्व युद्ध में हिस्सा लिया था। पहले विश्व युद्ध में इसके करीब 721 जवान शहीद हुए थे। वहीं दूसरे विश्व युद्ध में गढ़वाल राइफल्स के 349 जवान शहीद हुए थे। अंग्रेजों के लिए लड़ने वाले गढ़वाल राइफल्स के जवानों में सबसे ज्यादा चर्चित गबर सिंह नेगी हैं जिन्हें पहले विश्व युद्ध में बहादुरी दिखाने के लिए सर्वोच्च युद्ध सम्मान विक्टोरिया क्रॉस  दिया गया था।

नेगी फ्रांस में हुई बैटल ऑफ न्यूवे चैपल में 10 मार्च 1915 को शहीद हुए थे। नेगी जहां शहीद हुए थे वो उस जगह से करीब आठ किलोमीटर दूर है जहां इन भारतीय सैनिकों के शव मिले हैं। फ्रांस के बाद 39 गढ़वाल राइफल्स को मेसोपोटामिया (अब इराक) में तैनात किया गया था। पहले विश्व युद्ध में करीब 10 लाख भारतीय सैनिकों ने हिस्सा लिया था जिनमें से करीब 62 हजार मारे गये थे। इन सैनिकों को मौत के बाद विदेशी धरती पर ही दफन कर दिया जाता था। पहले विश्व युद्ध में ब्रिटिश सेना की जीत में भारतीय सैनिकों के योगदान की उपेक्षा होती आयी है। हाल ही में आई फिल्म डनकर्क में भारतीय सैनिकों के योगदान को नकारने को लेकर फिल्मकार क्रिस्टोफन नोलन की काफी आलोचना हुई थी।

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