पीएम मोदी का ड्रीम बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट लटका अधर में, महाराष्ट्र और गुजरात के किसानों ने रोड़ा अटकाया
मीडीया रिपोर्ट के अनुसार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट की राह मेें महाराष्ट्र और गुजरात के किसानों ने रोड़ा अटका दिया है। अगर ये विरोध लंबा खिंचा तो भारत और जापान के गठजोड़ से मुंबई से लेकर अहमदाबाद तक बनने वाला बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट खटाई में पड़ जाएगा। विरोध के सुर, ऐसे वक्त में उठे हैं जब 2019 के लोकसभा चुनाव सिर पर आ चुके हैं। मोदी सरकार लोकसभा चुनावों में इस प्रोजेक्ट को अपनी उपलब्धि के तौर पर पेश करने की योजना बना रही थी। भारत—जापान के इस साझे प्रोजेक्ट के लिए किसानों ने अपनी जमीनों के अधिग्रहण से इंकार कर दिया है। किसानों ने दोनों राज्य सरकारों के द्वारा दिए जाने वाले मुआवजे के पैकेज को लेने से भी इंकार कर दिया है।
अगर देर हुई तो पिछड़ेगा लक्ष्य: अहमदाबाद में एक पर्यटन महोत्सव में हिस्सा लेने के लिए आए जापान की मुंबई स्थित कार्यालय के मुखिया ने मीडिया से बातचीत में कहा कि अगर इस प्रोजेक्ट की शुरुआत करने में और ज्यादा देर की गई तो 2023 की डेडलाइन में इसे पूरा करना पाना संभव नहीं हो सकेगा। अधिकारियों ने कहा,’बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट 2023 के अंत तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है।इसलिए हमारे पास सिर्फ पांच साल का वक्त है। हमारे पास अधिक समय नहीं है। जमीन की समस्या को तुरंत सुलझाना चाहिए। जापान और भारत दोनों ही हाईस्पीड ट्रेन को भारत में दौड़ाने की योजना बेहद उत्साहित होकर साथ आए हैं।’
विरोध में हैं ठाणे के किसान : किसानों के प्रतिरोध का सबसे ताजा मामला ठाणे जिले से आया है। ठाणे के किसानों ने जिला प्रशासन के द्वारा किए गए भू सर्वेक्षण पर असहमति जताई है। किसानों का कहना है कि ये सर्वे प्रशासन ने विरोध करने वाले किसानों को गिरफ्तार करने की धमकी देकर किया है। किसानों के संगठन आगरी युवक संगठन के अध्यक्ष गोविंद भगत ने कहा, ‘हमारे लड़के 20 रुपये देकर मुंबई सीएसटी स्टेशन काम—धंधे पर जाते हैं। वह 250 रुपये खर्च करके बांद्रा—कुर्ला बुलेट ट्रेन से क्यों जाएंगे?’
नुकसान झेलने की स्थिति में नहीं हैं किसान: बीते बुधवार (16 मई) को इसी संगठन ने ठाणे के कलेक्टर कार्यालय में प्रदर्शन किया था। संगठन की मांग थी कि बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट को वसई क्रीक रूट पर शिफ्ट किया जाना चाहिए। जहां किसानों की जमीन का नुकसान नहीं होगा। ठाणे में गांव वालों के परिवार पहले ही चल रहे कई प्रोजेक्ट के कारण विस्थापन का दर्द झेल चुके हैं। वह अब और नुकसान झेलने की स्थिति में नही हैं।
मामूली जमीन की पड़ेगी जरूरत : प्रोजेक्ट के लिए अधिग्रहण की जाने वाली जमीन की चौड़ाई 17.5 मीटर है। ट्रैक को जमीन से 13.5 फीट ऊपर बनाया जाएगा। परदेशी ने बताया,’अधिग्रहित जमीन कई स्थानीय निकायों और विकास योजनाओं के तहत आती है। मुआवजा जमीन के विकास योजना के हिस्से के मुताबिक दिया जाएगा। योजना के लिए मामूली जमीन की जरूरत है। अगर ये हाईस्पीड ट्रैक जमीन के भीतर से ले जाया जाए तो जमीन की जरूरतें बढ़ जाएंगी। किसानों के हित और प्रोजेक्ट की लागत को ध्यान में रखते हुए ये फैसला लिया गया है।’
क्या कहते हैं किसान : शिल गांव के 66 वर्षीय किसान गोमाबामा पाटिल की 1.5 एकड़ जमीन भी इस प्रोजेक्ट के दायरे में आ रही है। इस जमीन पर वह पिछले 50 सालोें से बैंगन, टमाटर और लौकी की खेती करते हैं। पाटिल का कहना है कि मेरा बेटा अधिक नहीं कमा पाता है, इसलिए हमें जीविका के लिए खेती पर निर्भर रहना पड़ता है। हमें जमीन देने के बदले जमीन की कीमत का पांच गुना मुआवजा और एक बेटे को नौकरी दी जा रही है।
ऐसा है बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट : इस प्रोजेक्ट की लागत 1.08 लाख करोड़ रुपये है। जिसमें 88,000 करोड रुपये की आर्थिक मदद जापान इंटरनेशनल को—अॉपरेशन एजेंसी दे रही है। इस प्रोजेक्ट में भारत की नेशनल हाई स्पीड रेल कॉर्पोरेशन भी साझीदार है। इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट की कुल लंबाई 508 किमी है। जिसमें से 154.76 किमी लंबाई सिर्फ महाराष्ट्र से गुजरेगी जिसमें से 40 किमी हिस्सा सिर्फ ठाणे जिले का है। ठाणे जिले के 250 किसानों की कुल 20 हेक्टेयर जमीन इस प्रोजेक्ट के लिए अधिग्रहित करने का प्रस्ताव है। प्रोजेक्ट के समापन के लिए साल 2023 को तय किया गया है। भारत की कोशिश इसे 2022 में पूरा करने की होगी। जबकि भारतीय साझेदार कॉर्पोरेशन ने गुजरात, महाराष्ट्र और दादर और नगर हवेली में कुल 850 हेक्टेयर जमीन के अधिग्रहण का लक्ष्य रखा है।