निर्भया कांड की पांचवीं बरसी – आज भी वही अंधेरा, खौफ भरी वही ठिठुरन
16 दिसंबर 2012 की ठिठुरन भरी रात दिल्ली के वसंत विहार में इंसानियत शर्मसार हुई थी। उस रात एक लड़की की जिंदगी खत्म हुई थी, जो डॉक्टर बनकर दूसरों की जिंदगी बचाने का सपना देख रही थी। पूरे देश को झकझोर देने वाली इस घटना के पांच साल बाद भी सूरते-हाल बदला नहीं है। निर्भया कांड की पांचवीं बरसी पर समाज की अलग-अलग महिलाओं से की गई बातचीत में सामने आया कि सूरत बदली नहीं है, बल्कि बच्चियों से लेकर बुजुर्ग महिलाओं तक पर यौन हमले बढ़े हैं। गृहिणी हो या कारपोरेट जगत में काम करने वाली महिलाएं, सभी का यही मानना है कि महिला सुरक्षा के लिए उपाय नहीं किए गए और अगर किए गए तो वे कहीं नजर नहीं आते। पीड़ितों की मदद के लिए अस्पतालों में बने वन स्टॉप सेंटर भी कर्मचारियों की कमी से जूझ रहे हैं। निर्भया कांड की बरसी पर शनिवार को जंतर-मंतर और इंडिया गेट पर सन्नाटा पसरा रहा। सब कुछ सामान्य था, लेकिन महिलाओं से बातचीत करने पर पता चला कि कुछ सामान्य नहीं है। सबकी बातों में एक ही दर्द जाहिर हुआ कि कहीं कुछ नहीं बदला। उन्हें अब भी रात में सड़क से गुजरते हुए डर लगता है। वो अभी भी खुद को महफूज महसूस नहीं कर पा रही हैं।
गुरुग्राम की एक कंपनी में आॅनलाइन मार्केटिंंग का काम करने वाली सारिका ने कहा कि वह उत्तर प्रदेश के एक छोटे से शहर से यहां तक आई हैं। पिता के गुजरने के बाद भी हार न मानते हुए उन्होंने खुद को और अपनी मां को जीने का हौसला सिखाया, लेकिन वह डरती हैं जब सड़क पर चलते हुए कोई कार बगल से गुजरती है। वे बताती हैं कि गुरुग्राम में यह दिक्कत ज्यादा है। हम लड़कियां आज भी अकेले बाहर निकलने की हिम्मत नहीं कर पातीं। घरों में काम करके गुजारा करने वाली शशि गार्डन की 45 साल की कमलेश (बदला हुआ नाम)अपनी बेटियों को पढ़ा-लिखाकर अच्छी नौकरी दिलाने के लिए खुद दोनों वक्त घरों में काम करने जाती हैं। वे चाहती हैं कि उनकी बोटियां घरों में काम करने के बजाय पढ़ाई-लिखाई करें। उन्होंने बताया कि घरों में काम करने के दौरान एक बार सुस्ताने के लिए वह डीडीए के एक पार्क में बैठी थीं तो वहीं एक पुरुष ने उनका यौन उत्पीड़न करने की कोशिश की। आसपास लोगों के घर व गार्ड होने के बावजूद उस व्यक्ति को कोई डर नहीं लगा। उन्होंने शोर मचाकर किसी तरह अपनी जान बचाई। उन्होंने कहा कि निर्भया कांड के बाद भी लोगों में डर या समझ नहीं आई। कमलेश के मुताबिक, मोबाइल व शराब के नशे ने लोगों को बिगाड़ रखा है।
कृष्णा नगर में रहने वाली उषा मिश्र ने कहा कि निर्भया कांड के बाद भी कहीं कुछ नहीं बदला है। आए दिन किसी न किसी बच्चे के उत्पीड़न की बात सुनने या पढ़ने को मिल जाती है। अब तो बच्चों को पड़ोस में भेजने से भी डर लगता है। कहीं कोई डर या मशीनरी नहीं दिखाई देती कि लोग सुरक्षित महसूस करें। निर्भया कांड के बाद बलात्कार पीड़ितों के लिए वन स्टॉप सेंटर बनाए गए, लेकिन हकीकत यह है कि ये सेंटर भी कर्मचारियों की कमी का शिकार हैं। लेडी हार्डिंग अस्पताल में 36 नर्सों को निकाल दिया गया और अस्पताल का सारा कामकाज कुछ स्थाई नर्सों के जिम्मे आ गया। पहले ही स्टाफ की कमी से ज्ूाझ रहे इस अस्पताल वन स्टॉप सेंटर में आज कोई नर्स नहीं है।