भगोड़े कारोबारी विजय माल्या को दिए गए लोन के रकम के बारे में केंद्र सरकार को ही जानकारी नहीं

मीडीया से प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार  भगोड़े कारोबारी विजय माल्या को दिए गए लोन के बारे में केंद्र सरकार को ही जानकारी नहीं है। सूचना का अधिकार कानून (आरटीआई) के तहत वित्त मंत्रालय से माल्या को दिए कर्ज के बारे में विस्तृत जानकारी मांगी गई थी। मंत्रालय ने केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) को बताया कि उसके पास इस बाबत कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है। मंत्रालय ने सीआईसी को बताया कि इससे जुड़ी सूचना संबंधित बैंकों या आरबीआई के पास हो सकती है। सीआईसी ने मंत्रालय के जवाब पर तीखी टिप्पणी करते हुए उसे संदिग्ध बताया और उसे कानूनसम्मत भी नहीं माना। मुख्य सूचना आयुक्त आरके माथुर ने वित्त मंत्रालय के अधिकारियों को आरटीआई आवेदन को संबंधित सरकारी संस्थाओं या विभागों के पास भेजने का निर्देश दिया। दरअसल, राजीव कुमार खरे ने आरटीआई आवेदन के जरिये वित्त मंत्रालय से विजय माल्या को दिए गए कर्ज का ब्यौरा मांगा था। मंत्रालय ने शुरुआत में आरटीआई कानून के उन प्रावधानों का हवाला दिया था, जिसके तहत सूचना मुहैया कराने से छूट प्राप्त है।

संसद में सरकार दे चुकी है जानकारी: वित्त मंत्रालय के अधिकारी भले ही दावा करें कि उनके पास माल्या को विभिन्न बैंकों द्वारा दिए गए कर्ज या कर्ज के बदले में भगोड़े कारोबारी द्वारा दी गई गारंटी के बारे में सूचना नहीं है, लेकिन वित्त मंत्रालय पूर्व में संसद में इससे जुड़े सवालों का जवाब दिया था। वित्त राज्य मंत्री संतोष गंगवार ने 17 मार्च, 2017 को माल्या पर पूछे गए एक सवाल का जवाब देते हुए कहा था कि जिस व्यक्ति के नाम का उल्लेख किया गया (विजय माल्या) उसे 2004 में कर्ज दिया गया था और फरवरी 2008 में उसकी समीक्षा की गई थी। उन्होंने बताया था, ‘वर्ष 2009 में 8,040 करोड़ रुपये के कर्ज को एनपीए (नॉन परफॉर्मिंग एसेट) घोषित किया गया और साल 2010 में एनपीए को रिस्ट्रक्चर किया गया था।’ गंगवार ने राज्यसभा में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर बताया था, ‘कर्ज अदा नहीं करने पर विजय माल्या की जब्त की गई संपत्तियों की नीलामी की गई थी। इसके जरिये 155 करोड़ रुपये की रकम वसूली गई थी।’ वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 17 नवंबर, 2016 को नोटबंदी पर उच्च सदन में चर्चा के दौरान माल्या के कर्ज मुद्दे को ‘भयानक विरासत’ बताया था जो राजग सरकार को मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार से विरासत में मिली थी। इसके बावजूद आरटीआई के तहत दिए गए आवेदन पर वित्त मंत्रालय ने जानकारी उपलब्ध नहीं कराई, जिसके बाद इस मामले को सीआईसी के समक्ष लाया गया था।

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