Guru Nanak Jayanti 2017: जानिए क्यों मनाया जाता है गुरुपर्व, क्या है इस पर्व की महत्वता
गुरु नानक जयंती को गुरु पर्व के नाम से भी जाना जाता है। गुरु पर्व को नानक देव के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। यह सिख धर्म का सबसे बड़ा पर्व होता है। सिख धर्म में इस दिन को प्रकाश उत्सव कहा जाता है। इस दिन गुरु नानक जी का जन्म हुआ था। गुरु नानक सिख धर्म के पहले गुरु थे। हर वर्ष गुरु पर्व की तिथि में परिवर्तन आता रहता है। हिंदू पंचाग के अनुसार गुरु पर्व कार्तिक माह की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। गुरु नानक जी का जन्म 15 अप्रैल 1469 में तलवंडी नामक जगह हुआ था, जो अब पाकिस्तान के पंजाब हिस्से में है। सिख धर्म में 10 गुरु हुए हैं, माना जाता है कि गुरु नानक जी ने ही सिख धर्म की स्थापना की थी। गुरु नानक जी ने अपने व्यक्तित्व में दार्शनिक, योगी, गृहस्थ, धर्मसुधारक, समाजसुधारक, कवि, देशभक्त और विश्वबंधु सभी के गुण समेटे हुए थे।
गुरु नानक जी का बचपन से ही धर्म, शांति, पवित्रता आदि में ध्यान था। उन्होनें बचपन में ही आध्यात्मिकता का मार्ग चुन लिया था। उन्होनें अपने जीवन का अधिकतम समय इसी में बिताया, लेकिन उन्होनें बिना संन्यास धारण किए आध्यात्म की राह को चुना। उनका मानना था कि मनुष्य संन्यास धारण करके अपने सांसारिक जीवन से रुख नहीं बदल सकता है, उसे अपने सभी कर्मों का पालन करना चाहिए। उन्होनें मूर्ति पूजा को कभी भी नहीं सराहा। किसी भी धर्म की कट्टरता और रुढ़ियों के हमेशा वो खिलाफ थे। उनका मानना था कि ईश्वर को मानने के लिए आंतरिक मन साफ होना चाहिए। इस दिन की सिख धर्म में मान्यता के कारण तीन दिन पहले से ही इस पर्व की शुरुआत हो जाती है और सिख धर्म के अनुयायी गुरु नानक जी के भजन गाते हुए गुरुद्वारे से प्रभात फेरी निकालते हैं और 48 घंटे तक बिना रुके गुरुद्वारों में अखंड पाठ पढ़ा जाता है।
गुरु पर्व के दिन सुबह 5 बजे ही प्रभात फेरी निकाली जाती है और इसके बाद लोग गुरुद्वारों में कथा का पाठ सुनने जाते हैं। इसमें गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ किया जाता है। इसके साथ निशान साहिब व पंच प्यारों की झाकियां निकाली जाती हैं, इसमें वो सिख धर्म के झंडे लिए होते हैं और गुरु ग्रंथ साहिब को पालकी में लेकर चला जाता है। इसे नगर कीर्तन के नाम से जाना जाता है। इस नगर कीर्तन में गायक होते हैं जो गुरु नानक साहिब के उपदेश गाते हुए पंच प्यारों के पीछे चलते हैं। कई जगह इन नगरकीर्तनों में बैंड आदि भी चलता है और सिख धर्म के अनुयायी अपनी तलवार या कृपाल से कलाकारी दिखाते हुए चलते हैं। इन नगर कीर्तनों में अनुयायी अपने सिख गुरु के उपदेश बताते हुए चलते हैं और इसी तरह श्रद्धालु इसमें जुड़ते चलते हैं।