Happy Mahavir Jayanti 2018: जानें महावीर को क्यों कहा जाता है वर्धमान और क्या है इसका इतिहास
महावीर जैन धर्म के संस्थापक थे। इन्होंने तत्कालीन ब्राह्मण धर्म से अलग मानव मात्र की एकता और समता के विचारों का प्रतिपादन किया जो उस समय बहुत ही क्रान्तिकारी विचार था। भारतीय और पाश्चात्य दार्शनिकों ने महावीर के दर्शन को भौतिकवादी दर्शन माना है। इन्होंने वेदों पर आधारित धर्म से अलग एक नया चिंतन प्रस्तुत किया, जिसे उस समय बहुत से लोगों ने अपनाया। इनके महात्मा बुद्ध दूसरे दार्शनिक माने जाते हैं, जिन्होंने प्रचलित वैदिक या कहें सनातन धर्म से अलग हट कर उन विचारों का प्रतिपादन किया जो बहुसंख्यक समाज के लिए कहीं ज्यादा उपयोगी और ग्राह्य थे। यही वजह है कि महावीर के विचारों को उस समय शासक वर्ग के साथ आम जनमानस में भी जगह मिली। यह उनके विचारों की सर्वकालिक प्रासंगिकता है कि आज भी इनके अनुयायियों की कोई कमी नहीं है। महावीर के विचारों में जो नयापन था, उससे समाज में एक वैचारिक क्रांति शुरू हुई, पर आगे चल कर उनके मत के आधार पर एक संस्थागत धर्म की शुरुआत हो गई जिसे जैन धर्म के नाम से जाना जाता है।
महावीर के बारे में यह माना जाता है कि इनका जन्म बिहार के वैशाली में एक राजसी परिवार में 540 ई.पू. में हुआ था। इनके पिता का नाम सिद्धार्थ और मां का नाम त्रिशला था। इनके जन्म के साथ ही इनके राजसी परिवार में काफी समृद्धि आई, संभवत: इस वजह से इन्हें वर्धमान कहा जाने लगा। राज परिवार में सुख-सुविधा और ऐश्वर्य का जीवन जीने के बाद इनका मोहभंग शुरू हुआ और 30 वर्ष की उम्र में ज्ञान की खोज में इन्होंने घर का त्याग कर दिया। अनवरत यात्रा और ध्यान करते हुए साढ़े बारह वर्ष के बाद इन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई। इसके बाद महावीर संन्यासी के रूप में लगातार परिभ्रमण करते हुए लोगों को सत्य, अहिंसा, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह की शिक्षा देते रहे। इस दौरान इनके अनुयायी इनके साथ होते थे। कहा जाता है कि इन्होंने ज्ञान प्राप्ति के बाद 30 वर्षों तक पूरे देश में घूम कर लोगों को अपने उपदेश दिए। 72 वर्ष की उम्र में इन्हें निर्वाण प्राप्त हुआ। इनके व्यक्तिगत जीवन के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं मिलती है। कुछ लोग कहते हैं कि ये विवाहित थे और इनकी पत्नी का नाम यशोदा था। इन्हें एक पुत्री भी थी जिसका नाम प्रियदर्शना था, पर कई विद्वान उन्हें अविवाहित मानते हैं। कहा जाता है कि मृत्यु यानी निर्वाण प्राप्त करने के बाद इनके पार्थिव शरीर का क्रियाकर्म बिहार के नालंदा जिले के पावापुरी में किया गया था, जहां विशाल जैन मंदिर है जो जलमंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। देश भर से जैन धर्मावलंबी वहां तीर्थयात्रा करने आते हैं।
महावीर के जन्म के उपलक्ष्य में पूरे देश के साथ दुनिया भर में जहां भी जैन धर्म के मानने वाले लोग हैं, वहां महावीर जयंती मनाई जाती है। इस मौके पर उनकी शिक्षाओं को याद किया जाता है और उनके उपदेशों को जीवन में उतारने का संकल्प लिया जाता है। महावीर दुनिया के कुछ उन विचारकों में हैं जिनकी शिक्षाओं का सार्वभौमिक महत्व रहा है। भारत के अलावा पाश्चात्य दार्शनिकों ने भी उनसे प्रेरणा हासिल की है और उनके सिद्धांतों की प्रमुख बातों का अपने विचारों में समावेश किया है। महात्मा गांधी का मानना था कि उनके जीवन और विचारों पर महावीर का बहुत प्रभाव रहा है। उन्होंने अहिंसा, सत्य और अपरिग्रह जैसे विचारों को उनसे ही ग्रहण किया। कविगुरु रवीन्द्रनाथ ठाकुर भी महावीर के विचारों से बहुत प्रभावित थे। यही नहीं, टॉल्सटॉय जैसे महान लेखक तक ने यह स्वीकार किया था कि उनके व्यक्तित्व पर जिन भारतीय मनीषियों का अमिट प्रभाव पड़ा है, महावीर उनमें प्रमुख हैं।