सोहराबुद्दीन मामले में मीडिया रिपोर्टिंग पर लगे प्रतिबंध को हाइ कोर्ट ने निरस्त किया और कहा कि पाबंदी अनुचित
प्रेस को समाज पर नजर रखने वाला सबसे शक्तिशाली माध्यम बताते हुए बंबई उच्च न्यायालय ने आज निचली अदालत के उस आदेश को निरस्त कर दिया जिसमें बहुर्चिचत सोहराबुद्दीन शेख फर्जी मुठभेड़ मामले की सुनवाई की कार्यवाही की रिपोर्टिंग या प्रकाशन करने से पत्रकारों को रोका गया था। न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे ने कहा कि विशेष सीबीआई अदालत ने अपनी शक्तियों से बाहर जाकर यह आदेश पारित किया। उन्होंने याचिकाकर्ताओं-अदालत के रिपोर्टरों के एक समूह और शहर की ‘यूनियन आफ जर्नलिस्ट्स’-की इस बात पर सहमति जताई कि दंड प्रक्रिया संहिता के तहत केवल उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय को ही इस तरह के पाबंदी आदेश जारी करने का अधिकार है, वह भी केवल दुर्लभ मामलों में और सीमित समयावधि के लिए।
न्यायमूर्ति रेवती ने कहा कि आरोपियों द्वारा सनसनी फैलाने की चिंता मात्र इस तरह के पाबंदी आदेश जारी करने का पर्याप्त आधार नहीं है। विशेष सीबीआई न्यायाधीश एस जे शर्मा ने पिछले साल 29 नवंबर को पत्रकारों पर इस मामले की सुनवाई की कार्यवाही के प्रकाशन पर रोक लगाई थी। रिपोर्टर कार्यवाही में शामिल हो सकते हैं लेकिन इसे प्रकाशित नहीं कर सकते।
न्यायमूर्ति रेवती ने कहा कि इस तरह की पाबंदी अनुचित है और यह पत्रकारों को अभिव्यक्ति की आजादी के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन करता है। उन्होंने कहा, ‘‘प्रेस के अधिकार अभिव्यक्ति की आजादी प्रदान करने वाले संवैधानिक अधिकार में निहित हैं। एक खुली सुनवाई की रिपोर्टिंग में प्रेस न केवल अपने अधिकार का प्रयोग करती है बल्कि आम जनता को इस तरह की सूचनाएं उपलब्ध कराने के बड़े उद्देश्य को पूरा करती है।