हिमाचल प्रदेश के इस कुदरती झील में दबा है श्रद्धालुओं के चढ़ावे का करोड़ों अरबों का खजाना
हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले की कमरूघाटी में समुद्रतल से 9 हजार फुट की उंचाई पर स्थित एक कुदरती झील कमरूनाग में करोड़ों अरबों का खजाना दबा हुआ है मगर किसी की हिम्मत नहीं कि इसके साथ छेड़छाड़ कर सके क्योंकि यह खजाना उन लाखों श्रद्धालुओं के चढ़ावे का है जो यहां पर अपनी मनौतियां मांगने के लिए आते हैं और पूरा होने पर झील के रूप में मौजूद देवता को भेंट अर्पित करते हैं। सदियों की परंपरा के अनुसार झील में हर साल आषाढ़ महीने की सक्रांति को लगने वाले सरानाहुली मेले में पहुंचने वाले हजारों श्रद्धालु अपने साथ लाए सोने-चांदी के जेवर व करंसी नोटों भरी झील का नजारा नंगी आंखों से देखना है तो 14-15 जून को मंडी जिले के कमरूनाग में आएं। वैसे सालाना सरानाहुली मेले की पूरी तैयारियां हो चुकी हैं। मेले के दौरान व उसके बाद भी झील परिसर पर देव कमरूनाग समिति के कारिंदों व पुलिस की कड़ी नजर रहती है ताकि कोई इन नोटों व सोने चांदी को निकाल न ले। स्थानीय निवासी बिंदर ठाकुर के अनुसार चूंकि देव कमरूनाग के साथ लाखों लोगों की आस्था जुड़ी हुई है ऐसे में लोग यहां पर अपनी मन्नतें पूरी होने पर झील को देवता का रूप मान कर सोने चांदी के गहने व नोट उसमें अर्पित कर देते हैं। मेले के बाद समिति के कारिंदे तैरते नोटों को लंबे डंडे की मदद से निकाल लेते हैं और फिर उस रकम से सोना चांदी खरीद कर उसे भी झील में डाल देते हैं। बाहरी दुनिया के लोगों के लिए यह बेहद रोमांचक व आश्चर्यजनक क्षण रहते हैं।
पांडवों के ठाकुर हैं कमरूनाग
बड़ादेव कमरूनाग को जहां मंडी जनपद में वर्षा देने वाले देवता और रियासत के बड़ादेव का दर्जा प्राप्त है, वहीं पर इन्हें पांडवों के ठाकुर के रूप में भी जाना जाता है। कहा जाता है कि वनवासी पांडवों ने ही इस जगह पर बड़ादेव कमरूनाग की स्थापना की थी। जनश्रुति के अनुसार पहाड़ी राजा रत्नयक्ष भी महाभारत के युद्ध में शामिल होना चाहते थे। मगर उनकी शर्त यह थी कि वे उसी पक्ष का साथ देंगे जो युद्ध में हार रहा होगा और वे अपनी शक्ति से हारे हुए युद्ध को जीत कर दिखा देंगे। महाभारत के सूत्रधार रहे भगवान श्रीकृष्ण को जब इस बात का पता चला तो वे साधारण ग्वाले के वेश में राजा रत्नयक्ष की परीक्षा लेने निकल पड़े। रास्ते में उनका सामना रत्नयक्ष से हुआ। राजा रत्न का पराक्रम देख श्रीकृष्ण परेशान हो गए। अगर वह कौरवों के पक्ष से लड़े तो उनकी जीत सुनिश्चित है। जब रत्नयक्ष जाने लगे तो ग्वाले कहा महाराज मुझे एक चीज तो दो। जल्दी कहो क्या चाहते हो? पहले वचन दो महाराज। ग्वाले ने कहा। रत्नयक्ष ने सोचा ग्वाला है क्या मांग लेगा, उन्होंने हामी भर दी। इस पर ग्वाले ने कहा -महाराज मैं आपका सिर चाहता हूं। रत्नयक्ष चौंके और समझ गए कि यह पांडवों के पक्षधर श्रीकृष्ण की चाल है। श्रीकृष्ण से कहा कि आप मेरा सिर ले लीजिए पर महाभारत देखने की मेरी बहुत इच्छा है। महाभारत के दौरान श्रीकृष्ण ने रत्नयक्ष का सिर ऊंचे बांस पर टांग दिया। वहीं पर बड़ादेव कमरूनाग को महाभारत के योद्धा ववर्रीक से भी जोड़ा जाता है।
कैसे पहुंचे कमरूनाग
चंडीगढ़ से सुंदरनगर के पास धनोटू से करसोग मार्ग पर रोहांडा (मंडी से 55 किलोमीटर दूर) और वहां से लगभग डेढ़-दो घंटे की पैदल चढ़ाई चढ़ कर पहुंचा जा सकता है। शिमला से वाया तत्तापानी होकर भी रोहांडा पहुंचा जा सकता है। इसके अलावा मंडी से डडौर, बग्गी, चैलचौक से ज्यूणी घाटी होकर शाला, जाच्छ, जहल व देवीदड़ से भी पैदल चल कर पहुंचा जा सकता है। चैलचौक से आगे मां जालपा मंदिर सरोआ होकर भी कमरूनाग के लिए रास्ता है। ज्यूणी घाटी के जहल, कांढी, धंगयारा से भी रास्ते हैं। चूंकि मेले के दौरान श्रद्धालुओं का एक अटूट तांता यहां चलता रहता है, वनों की खूबसूरती व मनमोहक दृश्यवलियां नजर आती रहती हैं, ऐसे में बच्चे बूढ़े औरतें सब आसानी से इस चढ़ाई को पार कर लेते हैं। मेले के दौरान मौसम खराब होने पर भारी ठंड भी हो जाती है चूंकि यह स्थल काफी उंचाई पर है ऐसे में गर्म कपड़े जून महीने में भी साथ रखना सही रहता है।