नहीं रहे ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित हिंदी के वरिष्ठ साहित्यकार केदारनाथ सिंह

ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित हिंदी के वरिष्ठ साहित्यकार और जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के अध्यक्ष पद पर सेवारत रह चुके केदारनाथ सिंह जी का दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में निधन हो गया। वे पिछले कई दिनों से बीमार चल रहे थे.  उन्हें पेट में संक्रमण की शिकायत पर एम्स में भर्ती किया गया था, जहां इलाज के दौरान सोमवार शाम तकरीबन 5 बजकर 40 मिनट पर उन्होंने अंतिम सांस ली।

ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित केदारनाथ सिंह के जाने से हिंदी साहित्यकारों और पाठकों के बीच शोक व्याप्त है। 1934 में उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में जन्में केदारनाथ सिंह ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से 1956 में हिंदी में एमए औऱ 1964 में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की थी। वह जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में भारतीय भाषा केंद्र में आचार्य और अध्यक्ष पद पर भी सेवारत रह चुके थे।

केदारनाथ सिंह नई कविता के अग्रणी कवियों में शुमार किए जाते हैं। अज्ञेय द्वारा संपादित तीसरा सप्तक के कवियों में शामिल केदारनाथ सिंह को 2013 में साहित्य के सबसे बड़े सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। वह यह पुरस्कार पाने वाले हिंदी के 10 वें लेखक थे। इसके अलावा वह साहित्य अकादमी पुरस्कार, व्यास सम्मान, जीवन भारती सम्मान, दिनकर पुरस्कार, कुमारन आशान पुरस्कार और मैथिली शरण गुप्त पुरस्कार से सम्मानित किए जा चुके हैं। अभी बिल्कुल अभी, जमीन पक रही है यहां से देखो, अकाल में सारस आदि उनकी प्रमुख रचनाएं काफी लोकप्रिय रहीं।

उनके प्रमुख कविता संग्रह हैं- अभी बिल्कुल अभी, जमीन पक रही है, यहां से देखो, बाघ, अकाल में सारस, उत्तर कबीर और अन्य कविताएं, तालस्ताय और साइकिल, सृष्टि पर पहरा। उन्होंने ताना-बाना (आधुनिक भारतीय कविता से एक चयन), समकालीन रूसी कविताएं, कविता दशक, साखी (अनियतकालिक पत्रिका) और शब्द (अनियतकालिक पत्रिका) का संपादन किया। कल्पना और छायावाद, आधुनिक हिंदी कविता में बिंबविधान, मेरे समय के शब्द और मेरे साक्षात्कार उनके अहम आलोचना कर्म में गिने जाते हैं। इनकी कविताओं के अनुवाद सभी प्रमुख भारतीय भाषाओं के अलावा अंग्रेजी, रूसी, जर्मन, स्पेनिश और हंगेरियन आदि विदेशी भाषाओं में भी हुए हैं। केदारनाथ सिंह ने कविता पाठ के लिए दुनिया के अनेक देशों की यात्राएं की थी।

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