हिंडन नदी को प्रदूषण से मुक्त करने की कोशिशों के बीच 7 जिलों की 316 इकाइयां जांच के दायरे में
हिंडन नदी को स्वयं सेवी संस्थाओं के माध्यम से पुनर्जीवित करने की कोशिशों के बीच पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 7 जिलों की 316 प्रदूषणकारी इकाइयां जांच एजंसियों के निशाने पर हैं। यह जांच नदी में पानी की उपलब्धता या जल-मल उत्प्रवाह को लेकर नहीं, बल्कि उसके किनारे बसे गांवों में प्रदूषित जल से कैंसर बीमारी के फैलने को लेकर है। हिंडन नदी के किनारे बसे गांवों में जल प्रदूषण के चलते कैंसर की शिकायत पर दोआबा पर्यावरण समिति का गठन किया गया था। इससे निदान और विकल्प को तय करने पर समिति काम कर रही है। इसी कड़ी में एनजीटी के आदेश पर 7 जिलों की रेड कैटिगरी (अति प्रदूषणकारी श्रेणी) की 316 फैक्ट्रियों की जांच के लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और जल निगम की संयुक्त जांच दल गठित किया गया है। करीब तीन दर्जन संयुक्त जांच दल इकाइयों की जांच कर रहे हैं।
उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक, हिंडन नदी के किनारे बसे गांवों में जल प्रदूषण के चलते कैंसर की समस्या के निदान के लिए सहारनपुर, मुज्जफरनगर, शामली, मेरठ, बागपत गाजियाबाद और गौतमबुद्धनगर की 316 अति प्रदूषणकारी इकाइयों की जांच की जा रही है। इसमें सबसे अधिक करीब 250 इकाइयां गाजियाबाद और 45 गौतमबुद्ध नगर के ग्रेटर नोएडा इलाके में हैं। संयुक्त जांच दल इकाइयों के जलशोधन संयंत्र (एसटीपी/ ईटीपी) से नमूने ले रहा है। इकाइयों के आसपास के इलाके से भूजल के भी नमूने लिए जा रहे हैं। जिनकी जांच सीपीसीबी की प्रयोगशाला करेगी। इन दोनों जांच के अलावा कई अन्य बिंदुओं पर भी विशेषज्ञ निगाह रख रहे हैं। अधिकारियों के मुताबिक, हिंडन नदी के किनारे बसे गांवों में प्रदूषण के चलते कैंसर फैलने की शिकायत पर हैंडपंप का प्रयोग बंद करना पड़ा। इसके विकल्प के रूप में उत्तर प्रदेश जल निगम ने हिंडन के किनारे बसे काफी गांवों में जलापूर्ति के लिए पाइप लाइन बिछाई है। जिन जगहों पर पाइप लाइन नहीं बिछाई जा सकी है, वहां पर टैंकरों के जरिए जलापूर्ति सुनिश्चित करने के प्रयास किए जा रहे हैं।
आपको बता दें ने इसके पहले भी इस मामले में अपनी कवरेज रिपोर्ट प्रकाशित किया था, पढ़ें समाचार:
बीमारी बांट रही हिंडन होगी अब पुनर्जीवित
जानकारों के मुताबिक, जिन 316 चिन्हित इकाइयों की जांच की जा रही है, उन सभी में जल शुद्धीकरण समेत अन्य तमाम तरह के आधुनिक संयंत्र लगे हुए हैं। इसके बावजूद जांच समिति की रिपोर्ट के बाद तकरीबन 2 दर्जन बड़ी इकाइयों पर बंदी का खतरा हो सकता है। विभागीय सूत्रों ने दावा किया है कि जलशोधन संयंत्र लगे होने और उनके लगातार काम करने में अंतर है। इस अंतर का पता चलाने के लिए संयुक्त जांच की जा रही है। इकाइयों के दूषित और शोधन के बाद निकलने वाले जल के नमूनों में भारी धातु, क्लोरीन, साइनाइड आदि की जांच होगी।
यूपीपीसीबी के अधिकारी डॉ. बी. बी. अवस्थी ने बताया कि करीब 9 संयुक्त टीमों ने ग्रेटर नोएडा स्थित इकाइयों की जांच की हैं। सभी नमूनों की बारीक जांच के बाद परिणामों के आधार पर रिपोर्ट तैयार कर एनजीटी के समक्ष रखी जाएगी। दूसरी तरफ, पर्यावरणविद् जांच को महज कार्रवाई करार दे रहे हैं। यूपी के वर्षा जल संचयन (रेन वॉटर हार्वेस्टिंग) विशेषज्ञ दीपक जैन ने बताया कि हिंडन के किनारे बसे गांवों में कैंसर जैसी बीमारी के बढ़ने का कारण लगातार वर्षों तक इकाइयों से निकलने वाले घातक रासायनिक पानी को सीधा नदी में डालने से हुआ है। लंबे समय तक इस प्रक्रिया के जारी रहने के बावजूद अभी तक हालात पूरी तरह से नहीं बदले हैं। अभी भी भले ही चोरी छिपे या जानबूझकर बगैर शुद्ध किए इकाइयों से निकलने वाले उत्प्रवाह को सीधे हिंडन में डाला जा रहा है।