एक़ और हॉस्पिटल की अमानवीयता, गर्भवती महिला और उसके गर्भस्थ शिशु की मौत के बाद थमाया 18 लाख का बिल
भले ही सरकार निजी अस्पतालों के भारी भरकम बिलों के खिलाफ कार्रवाई के बड़े-बड़े दावे करती , किंतु इनकी मनमानी बदस्तूर जारी है। अस्पतालों में इलाज के नाम पर लाखों रुपए वसूलने का चलन खत्म नहीं हो रहा है। गुड़गांव के नामी हॉस्पिटल के बाद अब फरीदाबाद के एशियन हॉस्पिटल में चौंकाने वाला मामला सामने आया है। यहां एक गर्भवती महिला को बुखार की शिकायत पर हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया। 22 दिन इलाज के बाद महिला की मौत हो गई। इसके बाद भी हॉस्पिटल प्रशासन ने महिला के परिजनों को करीब 18 लाख रुपए का बिल थमा दिया। न्यूज एजेंसी एएनआई की खबर के अनुसार इतने दिनों तक चले इलाज के बाद ना महिला बची और ना ही उनके गर्भस्थ शिशु को बचाया जा सका। मामले में अब महिला के परिजनों ने हॉस्पिटल के खिलाफ जांच की मांग की है।
मृतक महिला के चाचा ने बताया कि उनकी भतीजी को बुखार था फिर भी उसे आईसीयू में शिफ्ट किया गया। हॉक्टरों ने बताया कि उसे टाइफाइड है। बाद में बताया गया कि आंत में छेद हैं। ऑपरेशन के लिए हमसे तीन लाख रुपए जमा कराने के लिए कहा गया। कहा गया कि पूरी रकम जमा कराने के बाद महिला का ऑपरेशन हो जाएगा। मृतक के चाचा ने आगे बताया कि वह अभी तक 10-12 लाख रुपए जमा कर चुके हैं। उनसे 18 लाख रुपए मांगे गए हैं।
मामले में अब हॉस्पिटल के क्वालिटी और सेफ्टी विभाग के चैयरमेन डॉक्टर रमेश चंदाना ने प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा, ‘महिला 32 सप्ताह से गर्भवती थी। उसे पिछले 8-10 दिनों से बुखार था। टाइफाइड के शक आधार पर आईसीयू में इलाज शुरू किया गया।। बाद में महिला की आंत में छेद होने की जानकारी सामने आई। इसकी सर्जरी भी की गई। लेकिन महिला को बचाया नहीं जा सका।’
बता दें कि इससे पहले गुरुग्राम के फोर्टिस हॉस्पिटल ने डेंगू पीड़िता के परिजनों को इलाज का भारी-भरकम बिल थमा दिया था। हालांकि इसके बाद हॉस्पिटल के ब्लड बैंक और आइपीडी फार्मेसी के लाइसेंस निलंबित कर दिए गए। हरियाणा के खाद्य व औषधि प्रशासन विभाग की तरफ से इस बाबत आदेश जारी किए। विभाग ने यह कार्रवाई अस्पताल की तरफ से कारण बताओ नोटिस पर मिले जवाब का अध्ययन करने के बाद की।
हरियाणा के स्टेट ड्रग कंट्रोलर नरेंदर आहूजा विवेक ने इसकी पुष्टि करते हुए बताया कि यह निलंबन तब तक जारी रहेगा जब तक की फोर्टिस अस्पताल जांच के दौरान पाई गई खामियों को दूर नहीं कर लेता और उन खामियों को दूर करने की पुष्टि विभाग द्वारा नहीं कर दी जाती है।