आईबी ने सरकार को भेजा अलर्ट- गुलामी को लेकर अंतरराष्ट्रीय मंच पर हो रही भारत की किरकिरी, करना होगा काउंटर
भारतीय खुफिया एजेंसी इंटेलीजेंस ब्यूरो (आईबी) ने नरेंद्र मोदी सरकार को “सबसे ज्यादा बाल गुलाम वाले देश” के तौर पर अंतरराष्ट्रीय जगत में भारत की छवि खराब होने के प्रति आगाह किया है। आईबी ने एक “गुप्त टिप्पणी” में सरकार से कहा है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ऐसे प्रचार का “प्रतिवाद” करने के लिए “कूटनीतिक और सूचना आधारित विरोध” करना होगा। आईबी ने पिछले हफ्ते ये टिप्पणी प्रधानमंत्री कार्यालय, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, विदेश मंत्रालय, श्रम मंत्रालय, और रॉ को भेजा है। आईबी ने अपनी टिप्पणी में कहा है कि अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) की गुलामी दस्तावेज में भारत को “सबसे ज्यादा गुलामों वाले देश” के तौर पर पेश करने से “भारत की छवि काफी खराब कर सकती है और इसका असर आयात और निर्यात पर पड़ सकता है जिसका नतीजा 8.7 की सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल (विकास दर) पर पड़ सकता है।” ये रिपोर्ट बाल मजदूरी, बंधुआ मजदूरी और मानव तस्करी को खत्म करने के बारे में है। संयुक्त राष्ट्र संघ की संस्था आईएलओ ने ये रिपोर्ट ऑस्ट्रेलिया स्थित निजी संस्था वाक फ्री फाउंडेशन (डब्ल्यूएफएफ) के साथ मिलकर तैयार की है।
आईएलओ-डब्ल्यूएफएफ की रिपोर्ट के आने के हफ्ते भर के अंदर ही आईबी ने अपनी टिप्पणी भेज दी थी। आईएलओ-डब्ल्यूएफएफ की रिपोर्ट “ग्लोबल एस्टिमेट ऑफ मॉडर्न स्लेवरी: फोर्स्ड लेबर एंड फोर्स्ड मैरीज” 19 सितंबर को जारी हुई थी। साल 2013 से ही अंतरराष्ट्रीय सर्वेक्षणों में भारत को “सबसे ज्यादा गुलामों वाले देश” के तौर पर पेश किया जा रहा है। रिपोर्ट के अनुसार भारत में घरेलू कामगार, ठेका मजदूर, कारखानों, खेतों, मछली मारने, यौन व्यापार इत्यादि क्षेत्रों में काम करने वाले लोगों के “आधुनिक गुलाम” बनने की आशंका रहती है।
आईएलओ-डब्ल्यूएफएफ की ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि “आधुनिक गुलामों” द्वारा तैयार किए गये “उत्पादों और सेवाओं को उपभोग कारोबारी प्रतीत होने वाली तरीकों से ही किया जाता है।” रिपोर्ट में कहा गया है कि “उनके तैयार किए उत्पाद, खाद्य पदार्थ हम खाते हैं, उनके बनाए कपड़े हम पहनते हैं और बहुत संभव है कि बहुत सारे घर जिनमें हम रह रहे हैं वो उन्होंने बनाए हों।” आईबी की टिप्पणी में दावा किया गया है कि यूरोपीय कंपनियां आईएलओ-डब्ल्यूएफएफ के सर्वे के आधार पर “दक्षिण भारत के टेक्सटाइल उद्योग में गुलामी खत्म करने के लिए एनजीओ को चंदा दे रही हैं।” अमेरिका और ब्रिटेन में बने हालिया कानूनों के अनुसार वहां की कंपनियों को ये सुनिश्चित करना होता है कि उन्हें “सेवा या उत्पाद” देने वाली कंपनियां “बंधुआ मजदूरी” के नियमों का उल्लंघन न करती हों।
आईबी ने अपनी टिप्पणी में उल्लेख नहीं किया है कि लेकिन पिछले कुछ सालों में कई एनजीओ ने भारत में “बंधुआ मजदूरी” पर रिपोर्टें प्रकाशित की हैं। आईबी ने अपनी टिप्पणी में सुझाव दिया है कि इन रिपोर्ट का जवाब देने के लिए गुलामी से जुड़े ज्यादा तथ्यात्मक आंकड़े और बड़े सांख्यिकी आधार वाले सर्वेक्षण कराकर “पुरजोर” तरीके से जवाब देना होगा। आईबी ने सुझाव दिया है कि सरकार को डब्ल्यूएफएफ की रिपोर्ट की “विश्वसनीयता पर सवाल” खड़ा करना होगा। साथ ही कूटनीतिक प्रयासों से ये सुनिश्चित करना होगा कि आईएलओ डब्ल्यूएफएफ के साथ मिलकर ये रिपोर्ट न प्रकाशित करे।