Independence Day 2018: भारतीय जंगी बेड़े को डुबोने आया था पाकिस्तानी PNS गाजी, बन गई थी जलसमाधि

Happy Independence Day 2018 (स्‍वतंत्रता दिवस 2018): गाजी अटैक के बारे में आपने सुना होगा। पाकिस्तान ने भारतीय जंगी बेड़े को डुबोने के लिए अपनी सबसे बेहतरीन पनडुब्बी पीएनएस गाजी को यहां भेजा था। मगर वह अपना मकसद पूरा करने में नाकामयाब रहा था। गाजी का हश्र कुछ यूं हुआ कि उसकी खुद ही जलसमाधि बन गई थी। ये सब कैसे हुए, पढ़िए नीचे-

1971 में भारतीय नौसेना की इस्टर्न नेवल कमांड का नेतृत्व आईएनएस विक्रांत कर रहा था। यही वजह है कि बंगाल की खाड़ी के पास भारतीय नौसेना की नाकाबंदी के कारण पूर्वी पाकिस्तान (आज का बांग्लादेश) से पाक घुसपैठ नहीं कर पा रहा था। पाकिस्तान इसी को लेकर हलकान था। फिर उसने अपनी इंवेंटरी की सबसे बेहतरीन पनडुब्बी को भेजने की ठानी, जो कि पीएनएस गाजी था।

गाजी के लिए दो मिशन अहम थे। पहला- आईएनएस विक्रांत को ढूंढकर उसे डुबोना, जबकि दूसरा- देश के पूर्वी समुद्र तल पर बारूद को बिछाना था। पाकिस्तान इस खास पनडुब्बी के बगैर पूर्वी पाकिस्तान वाले क्षेत्र में आईएनएस विक्रांत के ऑपरेशंस में दखल नहीं दे पा रहा था। ऐसे में गाजी को 14 नवंबर 1971 को कराची बंदरगाह से रवाना किया गया।

1964 में भारत-पाक के बीच युद्ध के दौरान इसे आईएनएस विक्रांत की निगरानी के लिए लगाया गया। युद्ध के बाद उसे पाकिस्तान से तुर्की भेजा गया, जहां इसे दुरुस्त किया गया। भारतीय नौसेना को पीएनएस गाजी के बारे में एक सिग्नल से मालूम पड़ा, जो पूर्वी पाकिस्तान में नौसैनिकों को भेजा गया था। पाकिस्तानी की नौसेना तब खास किस्म के तेल के बारे में पूछ रही थी।

घटना के दौरान पूर्वी भारतीय नौसेना के कमांडर इन चीफ वाइस एडमिरल एन.कृष्णन थे। उन्होंने ठाना कि गाजी को हर हाल में विक्रांत से दूर रखना होगा। नौ नवंबर को आईएनएस और उसके साथ की कुछ पनडुब्बियों को गुप्त जगह पर भेजा गया। लोकेशन का कोड दिया गया- पोर्ट एक्स। ये जगह अंडमान व निकोबार द्वीप के पास थी। कृष्णन इसके बाद आईएनएस राजपूत को आगे लाए, जो द्वितीय विश्व युद्ध के वक्त की पुरानी पनडुब्बी थी। ये विशाखापत्तनम में थी, जहां से इसे आईएनएस विक्रांत की जगह खड़ा किया गया।

भारतीय सेना की इस ट्रिक से पाकिस्तानी सैनिक भ्रम में आ गए। पाकिस्तानी नौसेना के अधिकारी आईएनएस राजपूत को ही आईएनएस विक्रांत समझ बैठे थे। आगे आईएनएस राजपूत को तीन-चार दिसंबर के आसपास एक गुप्त चैनल की ओर बढ़ाया गया। यह पनडुब्बी बीच रास्ते में थी, तभी कप्तान नजदीक में पाकिस्तान की सब्मरीन होने की आशंका को लेकर सतर्क हुए थे। फटाफट उन्होंने इंजन बंद कर पायलट को उतरने को कहा था।

इधर, पीएनएस गाजी आईएनएस विक्रांत को खोज न सकी थी। बारूद लगाकर वह लौट रही थी, उसी दौरान गाजी के रडार सिग्नल में कुछ गतिविधियां हुईं, जिससे पाकिस्तान की नौसेना ने समझा कि विक्रांत वहीं कहीं है। गाजी तब काफी गहराई में उतर चुकी थी, जहां भयंकर अंधेरा था।

वहीं, आईएनएस राजपूत उस गुप्त चैनल से निकले में जुटा था। कहा जाता है कि गाजी ने राजपूत से छुपने के लिए गहरा गोता लगाया था, तभी गाजी का पतवार जोर से टकराया था। भारतीय जंगी बेड़े को डुबोने आए गाजी की इसके बाद जलसमाधि बन गई। गाजी के नष्ट किए जाने को लेकर आज भी रहस्य कायम है। यह तबाह की गई या फिर किसी हादसे का शिकार हुई, इसे लेकर दो तरह की बातें चलायमान हैं। पहली- भारतीय नौसेना का पक्ष। दूसरा- पाकिस्तानी नौसेना का वर्जन।

भारत के अनुसार, पूरे घटनाक्रम पर ठोस जानकारी नहीं है। नौसेना की जांच में पता लगा था कि गाजी में अंदर से विस्फोट हुए थे। कारण- पनडुब्बी में बारूद, अन्य पनडुब्बी और बैट्रियां थीं।

पाकिस्तान का मानना है कि गहराई में अंधेरा था। वहां गाजी खुद के लिए सटीक जगह न ढूंढ पाई थी। वह उसी दौरान डुबकी लगा बैठी और अपने ही बारूद से टकरा गई। ये घटना आईएनएस राजपूत के आने से पूर्व की है। गाजी का अंत अपने आप हुआ था।

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