INX मीडिया केस: कार्ति चिदंबरम की जमानत के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची CBI
आईएनएक्स मीडिया मामले में पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम के पुत्र कार्ति चिदंबरम को जमानत देने के दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश को केन्द्रीय जांच ब्यूरो ने आज उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी। केन्द्रीय जांच ब्यूरो ने अपनी अपील में दावा किया है कि निचली अदालत में जमानत की अर्जी लंबित होने के दौरान उच्च न्यायालय को कार्ति की जमानत याचिका पर विचार की ‘ अनुमति नहीं ’ है। एजेन्सी ने आरोप लगाया गया है कि उच्च न्यायालय ने जमानत के स्तर पर साक्ष्यों की गुणवत्ता का ‘ विस्तृत अवलोकन ’ करके ‘ गलत ’ किया था और इससे जांच ब्यूरो का मामले पर गंभीर प्रतिकूल असर पड़ा है।
जांच ब्यूरो ने अपनी अपील में कहा है कि कार्ति को जमानत देते समय उच्च न्यायालय आरोपों के स्वरूप , इसके समर्थन वाले साक्ष्यों और मौजूदा मामले में साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ की समुचित आशंका की संभावना का पता लगाये बगैर ही न्यायोचित तरीके से अपने विवेक का इस्तेमाल करने में विफल रहा। उच्च न्यायालय के एकल न्यायाधीश ने 23 मार्च को कार्ति को जमानत प्रदान कर दी थी। सीबीआई ने कार्ति को 28 फरवरी को गिरफ्तार किया था। एकल न्यायाधीश ने अपने आदेश में कहा था कि राहत से उस समय तक इंकार नहीं करना चाहिए जब तक कि अपराध बहुत ही अधिक गंभीर न हो और जिसके लिए अधिक कठोर दंड का प्रावधान हो।
उच्च न्यायालय ने यह भी टिप्पणी की थी कि उसकी तत्कालीन कंपनी चेस मैनेजमेन्ट र्सिवसेज (प्रा) लिमिटेड और एडवान्टेज स्ट्रैटेजिक कंसंिल्टग प्रा लि के बीच ‘‘ सांठगांठ ’ के बारे में साक्ष्य हैं जिसने आईएनएक्स मीडिया को विदेशी निवेश संवर्द्धन बोर्ड से कथित मंजूरी दिलाने के लिये दस लाख रूपए का भुगतान प्राप्त किया था। परंतु कार्ति को जमानत से इंकार करने के लिये यह पर्याप्त नहीं है क्योंकि चेक से लिये गये इस भुगतान को कंपनी के रिकार्ड में दर्शाया गया है।
सीबीआई ने पिछले साल 15 मई को दर्ज प्राथमिकी के सिलसिले में कार्ति को गिरफ्तार किया था। आरोप है कि 2007 में विदेशी निवेश संवर्द्धन बोर्ड ने आईएनएक्स मीडिया को विदेश से 305 करोड़ रूपए की रकम प्राप्त करने के लिय अनुमति प्रदान करने में अनियमित्तायें की। इस समय कार्ति के पिता पी चिदंबरम केन्द्रीय वित्त मंत्री थे। सीबीआई ने शुरू में आरोप लगाया था कि कार्ति ने आईएनएक्स मीडिया को विदेशी निवेश संवर्द्धन बोर्ड से मंजूरी दिलाने के लिये दस लाख रूपए की रिश्वत ली। बाद में उसने इस आंकड़े में परिवर्तन करते हुये इसे दस लाख अमेरिकी डालर बताया था।