iPhone की फैक्ट्री में आत्महत्या रोकने तक के इंतजाम! पहचान छिपाकर काम कर चुके इस शख्स ने किए चौंकाने वाले खुलासे

चीन में आईफोन तैयार करने वाली ताइवानी कंपनी पेगाट्रॉन की फैक्ट्री में आत्महत्या तक रोकने के इंतजाम हैं। न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय और एक एनजीओ चाइना लेबर वॉच के लिए फैक्ट्री में 6 हफ्ते तक अंडरकवर जासूस के तौर पर काम करने वाले न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के ग्रेजुएशन के छात्र डेजियान जेंग ने चौंकाने वाली सच्चाई दुनिया के सामने रखी। करीब दो साल जेंग ने फैंक्ट्री में काम किया था और कई इंटरनेशनल मीडिया हाउसेज को इंटरव्यू दे चुके हैं। जेंग के मुताबिक फैक्ट्री के भीतर काम करने वाले वर्कर्स आत्महत्या जैसा कदम न उठा पाएं इसके लिए सीढ़ियों और सभी खिड़कियों पर जाल लगाया था जो सीलिंग वाले पिंजड़े की तरह दिखता था। मुख्य परिसर में 7 सब फैक्ट्रियां थीं, जिनमें करीब 70 हजार वर्कर्स काम करते थे। गुलाबी शर्ट, नीली पैंट और नीली टोपी वाली यूनिफॉर्म थी। कुछ वर्कर्स चप्पलें भी पहनते थे। वर्कर्स के पास आईफोन होना दुर्लभ था। आईफोन 7 बनना शुरू हुआ तो सुरक्षा और चाक चौबंद कर दी गई थी।

फैक्ट्री में वर्कर्स पर चिल्लाना मैनेजरों का रोज का काम था। रहने के लिए डॉरमेट्री थी। एक कमरे में 8 लोग रहते थे। एक मंजिल पर एक रेस्टरूम और एक बाथरूम था, जिसे करीब 200 लोग शेयर करते थे क्योंकि एक मंजिल पर 20 कमरे होते थे। जेंग को वहां काम करने के लिए 3100 युआन महीना मिलते थे जो कि 250 डॉलर और भारतीय करेंसी के हिसाब से आज के 30 हजार से कुछ ज्यादा रुपये होते हैं। जेंग के मुताबिक वर्कर्स को दिन में 12 घंटे काम करना होता था। जिनमें 10.5 घंटे काम के लिए और बाकी समय ब्रेक और खाने के लिए था। उन पर जबरन ओवरटाइम भी थोपा जाता था।

वर्कर्स शिकायत नहीं कर सकते थे, क्योंकि वह घूम फिरकर वहीं रहती थी, एप्पल तक नहीं पहुंचती थी। बिना मीट और कुछ सब्जियों वाले सबसे सस्ते नूडल 5 युआन के आते थे। फैक्टरी में ज्यादातर वर्कर्स पुरुष थे, जिनकी उम्र 18 से 30 वर्ष थी। वर्कर्स निजी तौर पर अच्छे थे। वे आमतौर पर वीकेंड यानी संडे को ही कैंपस से बाहर जाते थे। फैक्ट्रियों में टर्नओवर रेट बहुत ज्यादा था। लोग 2 हफ्ते या 1 महीने में छोड़कर चले जाते थे। वे इसे पैसों के लिए बस नौकरी मानकर करते थे। फैक्ट्री में भर्ती होने के लिए बस एक आईडी प्रूफ और अंग्रेजी के अल्फाबेट जानने की योग्यता की जरूरत पड़ी थी।

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