यहाँ मूर्ति के सिर और गले से हमेशा रक्त की धारा बहती है, जानें क्या है खास इस शक्तिपीठ में
मां दुर्गा की साधना के लिए वर्ष 2018 में गुप्त नवरात्रि की शुरुआत 18 जनवरी से शुरु हो चुकी है। देवी भागवत के पुराण के अनुसार वर्ष में 4 बार नवरात्रि आते हैं जिसमें से 2 गुप्त नवरात्रि होते हैं, इस दौरान अन्य नवरात्रि से अलग पूजा के विधान होते हैं। इसी कारण से इन्हें गुप्त नवरात्रि कहा जाता है। गुप्त नवरात्रि में भी 9 दिनों तक दुर्गा माता की उपासना की जाती है। नवरात्रि के पहले दिन घटस्थापना की जाती है और प्रतिदिन सुबह और शाम दोनों समय मां दुर्गा की आराधना की जाती है। गुप्त नवरात्रि तांत्रिक विद्या प्राप्त करने वालों के लिए विशेष मानी जाती है। भारत में दुर्गा माता के वैसे तो अनेकों मंदिर हैं लेकिन एक ऐसा मंदिर है जहां पर माता के गले से रक्त की धारा बहती है, झारखंड के इस मंदिर को सबसे शक्तिशाली पीठ माना जाता है।
झारखंड की राजधानी रांची से लगभग 80 कि.मी की दूरी पर छिन्नमस्तिका का मंदिर है। रजरप्पा के भैरवी भेड़ा और दामोदर नदी के संगम पर स्थित मां छिन्नमस्तिका मंदिर को आस्था की धरोहर माना जाता है। इस मंदिर में स्थापित मूर्ति के सिर और गले दोनों से हमेशा रक्त की धारा बहती रहती है। कामाख्या मंदिर के बाद दुनिया के दूसरे सबसे बड़े शक्तिपीठ के रुप में इस मंदिर को माना जाता है। दामोदर और भैरवी के संगम पर बने मां छिन्नमस्तिका मंदिर के मंदिर पर दो अलग-अलग गर्म जल के कुंड हैं। माना जाता है कि इस कुंड में नहाने से चर्म रोग जैसी गंभीर बीमारियां ठीक हो जाती हैं।
तंत्र साधना की प्राप्ति की चाह रखने वाले मां छिन्नमस्तिका के दर्शन के लिए आते हैं। इस मंदिर में स्थापित मूर्ति का सिर कटा हुआ है और इनके गले के दोनों तरफ से रक्तधारा बह रही हैं जिन्हें दो महाविद्याएं ग्रहण कर रही हैं और एक धारा मां छिन्नमस्तिका के मुख में जा रही है। इसके साथ माता के पैर के नीचे कमलदल पर रामदेव और रति लेटे हुए हैं। इस मंदिर में बकरे की बलि दी जाती है। बलि के बाद सिर पुजारी ले जाता है और बचा हुआ भाग बलि देने वाले व्यक्ति को दे दिया जाता है। इस मंदिर में खून पड़े होने के बाद भी एक मक्खी भी नहीं आती है। अनेको चमत्कारों के कारण ये मंदिर माता के भक्तों की जिज्ञासा का केंद्र बना हुआ है।