ISRO का धरती से आसमान का सफर : साइकिल से रॉकेट, बैलगाड़ी से ढोया पैलोड… चांद पर रखा कदम और सूरज से मिलाई आंख
National Space Day: भारत ने अपना स्पेस रिसर्च प्रोग्राम 1962 में शुरू किया था. लंबे वक्त तक ISRO बेहद लिमिटेड रिसोर्सेज के साथ काम करता रहा. कभी ISRO को अपने रॉकेट ले जाने के लिए साइकिल तक का इस्तेमाल करना पड़ा था.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने भारत के लूनर मिशन चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3)की सफलता का सम्मान करते हुए 23 अगस्त को आधिकारिक तौर पर राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस घोषित किया था. इसी दिन चंद्रयान-3 ने चांद के साउथ पोल पर सॉफ्ट लैंडिंग करके इतिहास रच दिया था. ऐसा करने वाला भारत दुनिया का पहला देश है. चंद्रयान-3 के साउथ पोल पर लैंडिंग के एक साल पूरे होने पर 23 अगस्त (शुक्रवार) को देश अपना पहला राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस मनाने जा रहा है.
ISRO की ऑफिशियल वेबसाइट के मुताबिक, भारत की स्पेस एजेंसी ISRO यानी इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन आज स्पेस में नई इबारत लिख रहा है. हम चांद पर कदम रख चुके हैं. चांद के उस कोने तक जा चुके हैं, जहां आज तक कोई नहीं जा पाया है. अब तक हम सूरज के नजदीक भी पहुंच चुके हैं. ISRO का सोलर मिशन आदित्य L-1 स्पेसक्राफ्ट 126 दिनों में 15 लाख किमी की दूरी तय करने के बाद 6 जनवरी को सन-अर्थ लैग्रेंज पॉइंट 1 (L1) पर पहुंच गया. आदित्य-L1 अब अपने 7 पैलोड की मदद से 5 साल तक सूरज की स्टडी करेगा. स्पेस में L1 ऐसा पॉइंट है, जहां पृथ्वी और सूर्य की गुरुत्वाकर्षण शक्तियां (Gravitational Force) संतुलित होती हैं.
हालांकि, ISRO का जमीन से आसमान और आसमान के पार तक जाने का सफर इतना आसान नहीं था. भारत ने अपना स्पेस रिसर्च प्रोग्राम 1962 में शुरू किया था. लंबे वक्त तक ISRO बेहद लिमिटेड रिसोर्सेज के साथ काम करता रहा. कभी ISRO को अपने रॉकेट ले जाने के लिए साइकिल तक का इस्तेमाल करना पड़ा था. यही नहीं, 1981 में भारत ने जब अपना छठा सैटेलाइट एप्पल लॉन्च किया था, तब इसे पैलोड तक बैलगाड़ी से ले जाना पड़ा था.