जज लोया की रहस्यमय हालात में मौत की स्वतंत्र जांच की मांग सुप्रीम कोर्ट ने की खारिज
सीबीआई जज बीएच लोया की कथित रहस्यमय हालात में मौत की स्वतंत्र जांच की मांग करने वाली विभिन्न याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (19 अप्रैल, 2018) को खारिज कर दिया है। अदालत ने बीते शुक्रवार को मामले में फैसला देने के लिए इसे गुरुवार तक सुरक्षित रखा था। तब चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने सभी पक्षों की दलील सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रखा लिया था। अब सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि जो जज मृतक लोया के साथ सफर कर रहे थे, उनके बयान पर शक नहीं किया जा सकता। दरअसल, इन जजों के बयान को दोबारा रिकॉर्ड करने की मांग की गई थी। कोर्ट ने कहा कि न्यायपालिका को बदनाम करने की कोशिश की गई। अदालत के मुताबिक, राजनीतिक हित साधने के लिए इस तरह की याचिकाएं दाखिल की गईं।
कोर्ट ने आगे कहा कि जज लोया की मौत प्राकृतिक थी और इसमें कोई शक नहीं है। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के वकील दुष्यंत दवे, इंदिरा जयसिंह और प्रशांत भूषण ने लोया के साथ नागपुर में मौजूद जजों की बात पर भरोसा न करने की बात कहकर सीधे न्यायपालिका पर सवाल उठा दिए। कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि ऐसे हालात में आदर्श स्थिति तो यही है कि याचिकाकर्ता के खिलाफ अवमानना की प्रक्रिया शुरू की जाए। अदालत के मुताबिक, राजनीतिक लड़ाई की वजह से न्यायपालिका को बदनाम करने की कोशिश की गई।
गौरतलब है कि सामाजिक कार्यकर्ता तहसीन पूनावाला, बॉम्बे अधिवक्ता संघ, पत्रकार बंधुराज सम्भाजी लोन, एनजीओ सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (सीपीआईएल) और अन्य ने जज लोया की मौत की स्वतंत्र जांच करने की मांग की थी। जज लोया सोहराबुद्दीन शेख के कथित फर्जी मुठभेड़ मामले की सुनवाई कर रहे थे, जिसमें भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अध्यक्ष अमित शाह भी आरोपी थे। बाद में अमित शाह को इस मामले में बरी कर दिया गया था। नवंबर 2014 में जज लोया की मौत हुई थी।
महाराष्ट्र सरकार ने जज लोया की मौत की स्वतंत्र जांच की मांग करने वाली याचिकाओं पर आपत्ति जताते हुए कहा कि यह असत्यापित मीडिया रिपोर्टों के आधार पर है, आरोपों से प्रेरित है और इसे योजनाबद्ध तरीके से दायर किया गया है, क्योंकि ‘इससे एक बड़ी राजनीतिक पार्टी का पदाधिकारी जुड़ा हुआ है।’ वहीं, सुनवाई के दौरान बॉम्बे अधिवक्ता संघ ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि दिवंगत जज लोया के परिवार को शायद यह कहने पर मजबूर किया गया कि वह इस मामले की नई जांच नहीं कराना चाहते।