Happy चैत्र नवरात्रि! जानें नवरात्र का महत्व, कलश स्थापना का शुभ मुहुर्त, पूजन विधि और स्तुति-मंत्र
Navratri 2018 Puja: हिंदू धर्म में नवरात्र एक प्रमुख त्योहार है। इस दौरान 9 दिन मां दुर्गा के अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है। एक वर्ष में चैत्र, आषाढ़, आश्विन और माघ के महीनों में कुल मिलाकर चार बार नवरात्र आते हैं लेकिन चैत्र और आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक पड़ने वाले नवरात्र काफी लोकप्रिय हैं। बसंत ऋतु में होने के कारण चैत्र नवरात्र को वासंती नवरात्र तो शरद ऋतु में आने वाले आश्विन मास के नवरात्र को शारदीय नवरात्र भी कहा जाता है। इस साल चैत्र नवरात्र 18 मार्च से शुरू हो रहे हैं। नवरात्र 18 मार्च से शुरू होकर 25 मार्च तक रहेंगे। 26 मार्च को कन्या को भोजन करवाकर व्रत खोला जाता है। चैत्र महीने में हिंदू देवी दुर्गा की आराधना करते हैं। विक्रम संवत 2074 के पहले महीने चैत्र की शुरुआत मंगलवार से हुई। त्योहार के दौरान देवी के नौ रूपों का ध्यान करने से शांति और आनंद की प्राप्ति होती है।
चैत्र और आश्विन नवरात्र में आश्विन नवरात्र को महानवरात्र कहा जाता है। क्योंकि यह नवरात्र दशहरे से ठीक एक दिन पहले होता है। नवरात्र में देवी मां के 9 रूपों की पूजा की जाती है। मां शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्रि मां के नौ अलग-अलग रुप हैं। चैत्र नवरात्र का महत्व इसलिए होता है क्योंकि इस महीने से शुभता और ऊर्जा का आरम्भ होता है। ऐसे समय में मां दुर्गा की पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि आती है।
Kalash Sthapana: आदि शक्ति दुर्गा की अराधना का पर्व चैत्र नवरात्र की शुरुआत 18 मार्च से हो रही है। इसी दिन से हिंदू कैलेंडर का नववर्ष भी प्रारंभ होता है। नवरात्र के पहले दिन कलश स्थापना का विधान है। इस दिन कलश स्थापित कर श्रद्धालु नौ दिनों के व्रत की शुरुआत करते हैं। शास्त्रों में कलश स्थापना की काफी महिमा बताई गई है। शास्त्रों के मुताबिक शुभ मुहुर्त में ही घट को स्थापित करना चाहिए। चैत्र प्रतिपदा 17 मार्च की शाम से ही शुरू हो जाएगी।
17 मार्च को शाम 6 बजकर 41 मिनट से लेकर 18 मार्च को शाम 6 बजकर 31 मिनट तक प्रतिपदा रहेगी। इस दरमियान 18 मार्च की सुबह से ही कलश स्थापना का शुभ मुहुर्त रहेगा। इस दिन सुबह 6 बजकर 31 मिनट से लेकर 7 बजकर 45 मिनट तक का समय सर्वार्थ सिद्धि योगा का है। इस दौरान कलश स्थापना सबसे बेहतर होगा।
कलश स्थापना की पूजा विधि – कलश स्थापना के लिए शास्त्रों में खास विधान का प्रावधान है। इसके लिए सबसे पहले कलश बिठाने वाले को मंत्र से स्वयं को और पूजन सामग्रियों को पवित्र कर लेना चाहिए। इसके लिए इस मंत्र का इस्तेमाल करना चाहिए –
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा।
यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः॥
मंत्र से स्वयं तथा पूजन सामग्री को शुद्ध कर लेने के बाद दाएं हाथ में अक्षत, फूल औऱ जल लेकर दुर्गा पूजन का संकल्प करें। इसके बाद माता की तस्वीर या प्रतिमा के सामने कलश मिट्टी के ऊपर रखकर हाथ में अक्षत, फूल और गंगाजल लेकर वरुण देव का आह्वान करें और कलश में सर्वऔषधि तथा पंचरत्न डालें। कलश के नीचे की मिट्टी में सात धान और सप्तमृत्तिका मिलाएं। अब आम के पत्ते कलश में डालें और कलश के ऊपर अनाजों से भरा एक पात्र रखें। इस पात्र के ऊपर एक दीप जलाकर रख दें। कलश में पंचपल्लव डालकर इसके ऊपर एक पानी वाला नारियल रखें जिस पर लाल रंग का वस्त्र लपेटें। इसके बाद कलश के नीचे की मिट्टी में जौ के दाने फैला दें और इस मंत्र का जाप करते हुए देवी का ध्यान करें-
खड्गं चक्र गदेषु चाप परिघांछूलं भुशुण्डीं शिर:,
शंखं सन्दधतीं करैस्त्रि नयनां सर्वांग भूषावृताम।
नीलाश्मद्युतिमास्य पाद दशकां सेवे महाकालिकाम,
यामस्तीत स्वपिते हरो कमलजो हन्तुं मधुं कैटभम॥