इस स्थान पर धरती के गर्भ से निकल रही है चमत्कारी ज्वाला, बादशाह अकबर ने भी मानी थी यहां हार

ज्वालामुखी मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। मान्यता है कि इस स्थान पर माता सती की जीभ गिरी थी। इस स्थान पर माता के दर्शन ज्योति के रुप में होते हैं। इसी कारण से इसे ज्वालामुखी कहा जाता है। ज्वालामुखी मंदिर को जोता वाली का मंदिर और नगरकोट भी कहा जाता है। ज्वालामुखी मंदिर कांगडा घाटी से करीब 30 कि.मीं दूर स्थित है। इस मंदिर को खोजने का श्रेय पांडवों को जाता है, उन्हीं के द्वारा इस स्थल की खोज हो पाई थी। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार माना जाता है कि 51 स्थलों पर माता सती के शरीर के हिस्से गिरे थे और उस हर एक स्थान को शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि शिव के ससुर राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया था जिसमें माता सती और भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया था। सती अपने पिता के पास इसका उत्तर लेने गई वहां उनके पति शिव को अपमानित किया गया जो वो सहन नहीं कर पाईं और हवन कुंड में कूदकर अपनी जान दे दी।

भगवान शिव को जैसे ही माता सती की मृत्यु के बारे में पता चला तो वो वहां पहुंचे और अपनी पत्नी का शव उठाकर क्रोध में तांडव करने लगे। इस संकट से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने सती के शरीर के 51 टुकड़ों में बांट दिया और जहां वो गिरे वो स्थान शक्तिपीठ बन गया। माता सती की जीभ गिरने के कारण उस स्थान को ज्वालामुखी कहा जाता है। इस स्थान को सबसे पहले एक गाय पालक ने देखा था। उसकी गाय दूध नहीं देती थी और उस स्थान पर मौजूद एक दिव्य कन्या को दूध पिला दिया करती थी। ये बात गायपालक ने वहां के राजा को बताई। राजा ने इस बात की पड़ताल करने के बाद वहां एक मंदिर बना दिया।

इस मंदिर के लिए एक अन्य कथा प्रचलित है जब अकबर दिल्ली का राजा हुआ करता था। ध्यानु नाम का भक्त अपने साथियों के साथ माता के दर्शन के लिए आ रहा था तब अकबर के सिपाहियों ने उसे रोक लिया और अपनी भक्ति को साबित करने के लिए कहा। माता ने अपने भक्त की लाज रखने के लिए अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई। इसके बाद बादशाह अकबर ने ज्वाला जी जाकर उस चमत्कारिक ज्योति को बुझाने का प्रयास किया लेकिन असफल हो गया। इसके बाद बादशाह अकबर ने हार मानते हुए माता को सोने का छतर चढ़ाया जिसे माता ने स्वीकारा नहीं और वो उसी समय गिरकर सोने से किसी ओर धातु में परिवर्तित हो गया।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *