आखिर भगवान शिव को क्‍यों लेना पड़ा शिवलिंग का रूप, जानिए किसने दिया था ब्रह्मा को कभी न पूजे जाने का श्राप

भगवान शिव को देवों का देव कहा जाता है। हर वेद और पुराण में भगवान शिव को महाकाल और सृष्टि के निर्माता के रुप में देखा गया है लेकिन कहीं भी उनके जन्म से जुड़ी कोई बात नहीं कही गई है। भगवान शिव को निरंकार माना जाता है। निरंकार उसे कहा जाता है जिसका कोई रुप नहीं होता है। माना जाता है कि भगवान शिव ने ही सृष्टि के निर्माण के बारे में सोचा था। इसके बाद उन्होनें भगवान विष्णु को जन्म दिया। भगवान विष्णु की नाभि से ब्रह्मा जी उत्पन्न हुए। वह दोनों इतने शक्तिशाली थे कि दोनों के बीच में कई बार इस बात को लेकर युद्ध हो जाता था कि कौन सबसे ज्यादा शक्तिशाली है। एक बार ये युद्ध इतना बढ़ गया कि करीब 10 हजार सालों तक चला।

भगवान शिव इस युद्ध को रोकने के लिए इन दोनों के बीच में एक पत्थर के रुप में आ गए। माना जाता है कि इस पत्थर में से बहुत शक्तिशाली ज्वाला निकल रही थी। माना जाता है कि उस समय आकाशवाणी हुई और उसमें कहा गया कि जो इस शिवलिंग का आरंभ या अंत पा लेगा वो ही सबसे ज्यादा शक्तिशाली माना जाएगा। भगवान विष्णु ने नीचे का हिस्सा चुना और ब्रह्मा जी ने लिंग का ऊपरी हिस्से को चुना। कई वर्षों तक भगवान विष्णु को कोई उपाय नहीं मिला तो वो भगवान शिव के पास गए और उनसे कहा कि मुझे माफ कर दीजिए इसका कोई अंत नहीं है। ये मेरी अज्ञानता थी कि मैं अपने आपको सबसे शक्तिशाली मानता था।

ब्रह्मा जी ने लिंग का आरंभ चुना था, उन्हें आरंभ तो नहीं मिला लेकिन उन्होनें सोचा कि मैं झूठ बोल दूंगा कि मुझे आरंभ मिल गया है और फिर सबसे शक्तिशाली घोषित कर दिया जाएगा। ब्रह्मा जी ने इसी तरह से जाकर कहा लेकिन तभी आकाशवाणी हुई कि ये शिवलिंग है और मेरा कोई आकार नहीं है, मैं निरंकार हूं। भगवान शिव सच्चाई जानते थे और उन्होनें भगवान विष्णु को आशीर्वाद दिया और ब्रह्मा जी को श्राप दे दिया। भगवान शिव ने कहा कि ब्रह्मा जी की कभी पूजा नहीं की जाएगी, ब्रह्म जी को अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होनें माफी मांगी। इसके बाद से भगवान शिव को शिवलिंग के रुप में पूजा जाने लगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *