जानिए भगवान शिव के पास कैसे आया था त्रिशूल, डमरू, सांप और चंद्रमा
भगवान शिव का ध्यान करने से ही एक ऐसी छवि उभरती है जिसमें वैराग है। इस छवि के हाथ में त्रिशूल, वहीं दूसरे हाथ में डमरु, गले में सांप और सिर पर त्रिपुंड चंदन लगा हुआ है। किसी भी शिव मंदिर या मूर्ति में भगवान शिव के पास ये चार चीजें हमेशा मिलती हैं। कई सवाल इसके साथ जुड़े हैं कि भगवान शिव के साथ ही ये सब चीजें प्रकट हुई थी। इन सवालों का ये भी उत्तर हो सकता है कि समय के साथ और अलग-अलग घटनाओं के साथ भगवान शिव के साथ ये सब जुड़ता गया हो। भगवान शिव की जटाओं में अर्ध चंद्रमा, सिर से निकलती गंगा आदि ऐसी कितनी बातें हैं जो भगवान शिव को रहस्यमयी बनाती हैं। आज इस रहस्य को सुलझाते हुए बताते हैं कि किस प्रकार से भगवान शिव के पास ये सब कैसे आता चला गया।
शिव का त्रिशूल-
भगवान शिव को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इसका ये कारण भी है कि उन्हें सभी प्रकार के अस्त्रों और शस्त्रों का हमेशा से ज्ञान रहा है। पौराणिक कथाओं के अनुसार त्रिशूल और धनुष का अधिक प्रयोग दिखता है। मान्यता है कि भगवान शिव ने अपने धनुष का आविष्कार खुद किया था। त्रिशूल के लिए मान्यता है कि जब भगवान शिव प्रकट हुए तो रज, तम, सत इन तीन गुणों के साथ प्रकट हुए थे। यही तीनों गुण भगवान शिव के तीन शूल यानि त्रिशूल बने। इन तीनों के बिना सृष्टि का संचालन कठिन था। इसलिए माना जाता है भगवान शिव ने इन तीनों को अपने हाथ में धारण किया।
डमरु-
सृष्टि के आरंभ में जब माता सरस्वती प्रकट हुई तब उन्होनें अपनी वीणा के स्वर से ध्वनि को जन्म दिया। ये ध्वनि बिना स्वर और संगीत के विहीन थी। उस समय भगवान शिव ने नृत्य करते हुए चौदह बार डमरु बजाया जिससे ध्वनि से व्याकरण और संगीत से छंद और ताल का जन्म हुआ।
सर्प की कथा-
भगवान शिव के गले में मौजूद सर्प को नागराज कहा जाता है। इस नाग का नाम वासुकी है। इन्हीं का प्रयोग समुद्र मंथन के दौरान रस्सी के रुप में किया गया था। इनकी भक्ति के कारण ही भगवान शिव ने नागलोक का राजा बनाया था और अपने गले में आभूषण के तौर पर धारण किया था।
चंद्रमा-
शिव पुराण के अनुसार चंद्रमा का विवाह दक्ष प्रजापति की 27 कन्याओं के साथ हुआ था। इन्हीं कन्याओं को नक्षत्र माना जाता है। इन सभी कन्याओं में से चंद्रमा विशेष स्नेह रोहिणी से करते थे। इस बात से नाराज होकर सभी कन्याओं ने दक्ष से की तो उन्होनें चंद्रमा को श्राप दे दिया। इस श्राप से बचने के लिए चंद्रमा ने भगवान शिव की तपस्या करी और भगवान शिव ने इस तपस्या से प्रसन्न होकर उनके प्राणों की रक्षा की और उन्हें अपने शीष धारण किया। माना जाता है कि दक्ष के श्राप के कारण ही चंद्रमा घटता और बढ़ता रहता है।