जानिए शनिदेव के जन्म की कथा, कैसे सूर्यपुत्र की दृष्टि हुई टेढ़ी

शनिदेव को सभी ग्रहों में सबसे ज्यादा क्रूर माना जाता है। लेकिन क्या हम जानते हैं कि उनके क्रूर होने की पीछे की क्या कथा है। शनिदेव के जन्म के बारे में स्कंदपुराण के काशीखंड में एक कथा मिलती है कि राजा दक्ष की कन्या संज्ञा का विवाह सूर्यदेवता के साथ हुआ था। सूर्यदेव का तेज बहुत अधिक था, जिसे लेकर संज्ञा का परेशान रहती थी। वो सूर्य की अग्नि को कम करना चाहती थीं। कुछ समय बाद संज्ञा और सूर्य के तीन संताने उत्पन्न हुई। वैवस्वत मनु, यमराज और यमुना। संज्ञा इसके बाद भी सूर्य के तेज को कम करने का उपाय सोचती रहती थी, इसलिए उन्होनें एक दिन अपनी हमशक्ल को बनाया और उसका नाम सवर्णा रखा। संज्ञा ने अपने बच्चों और सूर्यदेव की जिम्मेदारी संवर्णा को सौंप दी और खुद अपने पिता के घर चली गई। वहां उनके पिता ने उन्हें वापस भेज दिया। लेकिन वो एक जंगल में जाकर घोड़ी का रुप लेकर तपस्या में लीन हो गई।

सूर्यदेव को कभी संवर्णा पर शक नहीं हुआ क्योंकि वो संज्ञा की छाया ही थी। संवर्णा को छाया रुप होने के कारण सूर्यदेव के तेज से कभी कोई परेशानी नहीं हुई। सूर्यदेव और संवर्णा के मिलन से मनु, शनिदेव और भद्रा का जन्म हुआ। ब्रह्मपुराण के अनुसार शनिदेव के गुस्से की एक कथा है कि उनकी माता छाया पर सूर्यदेव ने शक किया कि शनि काले हैं इस कारण वो उनके पुत्र नहीं हो सकते हैं। इस बात से नाराज होकर शनि ने गुस्से से सूर्य को देखा जिस कारण सूर्य भी काले हो गए और अपनी गलती का अहसास होने पर सूर्य ने माफी मांगी और फिर उन्हें उनका असली रुप प्राप्त हुआ।

ब्रह्मपुराण के अनुसार शनिदेव भगवान श्री कृष्ण के भक्त थे और शनिदेव जब विवाह योगय हुए तो उनका विवाह चित्ररथ नाम की एक कन्या के साथ हुआ। वैसे तो शनिदेव की पत्नी सती, साध्वी और परम तेजस्वनी थी, लेकिन हमेशा शनिदेव का कृष्ण भक्ति में लीन रहते थे और पत्नी को भुला बैठे थे। एक रात ऋतु स्नान कर संतान प्राप्ति की इच्छा लिए वह शनि के पास गई लेकिन शनिदेव हमेशा की तरह भक्ति में लीन थे। वो प्रतिक्षा कर-कर के थक गई और उनका ऋतुकाल बेकार हो गया। क्रोध में आकर उन्होनें शनिदेव को श्राप दे दिया कि उनकी दृष्टि जिसपर भी पड़ेगी वो नष्ट हो जाएगा। ध्यान टूटने पर शनिदेव ने पत्नी को मनाने का प्रयत्न किया लेकिन श्राप वापस नहीं किया जा सकता है। इसलिए उस दिन के बाद से शनिदेव किसी पर भी दृष्टि डालने से बचते हैं।

 

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