हिमाचल: दो हजार साल पुराना है कुल्लू का शमशरी महादेव का मंदिर

कमलेश वर्मा 

कुल्लू से कुछ दूरी पर चार गढ़ों के मढ़पति शमशरी महादेव का पावन मंदिर है जहां बाबा भोले शमशरी स्वरूप में विराजमान हैं। आनी से महज तीन किलोमीटर दूर सैंज-लूहरी-आनी-औट राष्ट्रीय उच्च मार्ग के पास शमशर गांव में भोले का यह रूप नजर आता है। इस प्राचीन मंदिर केपरिसर में अंकित इतिहास की मानें तो यह मंदिर तकरीबन दो हजार वर्ष पहले का है, जिसकी पुष्टि हिमाचल के प्रख्यात टांकरी विद्धान खुब राम खुशदिल करते हैं। उन्होंने टांकरी में लिखे अनुवाद के हिंदी विवरण में लिखा है कि इस देव परिसर का विक्रमी संवत के अनुसार सन 57 में पुनर्निर्माण किया गया है, जिससे यह माना जा रहा है कि यह मंदिर तकरीबन दो हजार वर्ष पहले बना।  शमशरी महादेव की कहानी अपने नाम को सार्थक करती है। ‘शमशर’ शब्द के संधि विच्छेद में शम का अर्थ पहाड़ी भाषा में पीपल के वृक्ष को कहते हैं जबकि ‘शर’ यानि सर का मतलब होता है तालाब। किंवदंती के मुताबिक शमशर से कुछ दूरी पर प्राचीन गांव कमांद से एक ग्वाला प्रतिदिन अपने मालिक की दुधारू गाय को चराने शमशर गांव में आता था।

परंतु अक्सर सांयकाल को जब उसका मालिक गाय को दुहने की कोशिश करता तो उसके थनों से दूध ना पाकर निराश हो जाता और उसके कोप का भाजन बनता उसका नौकर। ग्वाला भी इस बात से परेशान रहता कि आखिर गाय का दूध जाता कहां है। एक दिन उसके मालिक को युक्ति सूझी और उसने ग्वाले का पीछा किया। काफी दूर जाने के बाद उसने पाया कि गाय एक पीपल के पेड़ के नीचे अपने थनों से दूध कुछ इस तरीके से डाल रही थी कि मानो वह शिवलिंग पर ही दूध चढ़ा रही हो। उसी रात उस ग्वाले को देव ने दर्शन देकर कहा कि जहां तुम्हारी गाय रोज मुझ पर अपना दूध चढ़ाती है, उसी ‘शम’ यानी पीपल के पेड़ के नीचे मेरा भू लिंग है उसे वहां से निकालकर पीछे की पहाड़ी पर स्थित गांव में स्थापित करो। उसके बाद से आज भी कमांद गांव से ही भोलेनाथ पर गाय का घी सर्वप्रथम चढ़ाया जाता है। इसी तरह से शमशर के ‘शम’ शब्द की पुष्टि होती है। दूसरे ‘सर’ शब्द यानी तालाब के बारे में प्राचीन किवंदती के अनुसार एक गड़रिया अपनी पत्नी के साथ जलोड़ी दर्रे से कुछ दूरी पर स्थित सरेऊल नामक स्थान पर रहने वाली बूढ़ी नागिन के पास पुत्र प्राप्ति के लिए प्रार्थना करने गया था। उसने अपनी इच्छा पूर्ति होने पर मां को सोने की बालियां चढ़ाने का वचन दिया। माता के आशीर्वाद से उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति हो गई।

अपने वचन के अनुसार गडरिया मांं के पास गया और उन्हें बालियां भेंट कर दीं। लेकिन उसके मन में लालच आ गया। उसने सोचा कि उसे तो संतान प्राप्ति होनी ही थी फिर उसने बालियां क्यों चढ़ा डालीं? यही कुविचार मन में लाता हुआ गड़रिया जब शमशर के त्रिवेणी संगम पर पहुंचा तो उसे प्यास लगी। जैसे ही गड़रिये ने बूढ़ी नागिन माता के सरेऊल सर से आ रही नदी के पानी से बने ‘सर’ यानी तालाब से पानी पीना चाहा तो वही बालियां उसके हाथों में आ गर्इं और उसका नवजात बेटा वहीं निर्जीव हो गया। उसी त्रिवेणी का सर यानी तालाब जोकि आजकल ‘शर’ है ‘शम’ के साथ जुड़कर ‘शमशर’ बना।

सरकार की अनदेखी पड़ी सौंदर्य पर भारी
आनी पूरी तरह से प्राकृतिक सौंदर्य से लबालब है। पर्यटन के अलावा धार्मिक दृष्टि से भी इस क्षेत्र की एक अलग ही पहचान है। यहां के कई अनछुए पर्यटन स्थल सरकार की बेरुखी का शिकार हैं। इस घाटी में पर्यटकों के लिए कई विकल्प है जिसके कारण वह इस जगह का रुख कर सकते हैं लेकिन सरकार की नजरे इनायत इस जगह को लोगों से दूर किए है।

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