महान क्रांतिकारी महिला – मैडम भीकाजी कामा

काजी रुस्तम कामा को मैडम कामा के नाम से भी जाना जाता है। वे भारतीय मूल की फ्रांसीसी नागरिक थीं। उन्होंने दुनिया के तमाम देशों में जाकर भारत को आजाद कराने के पक्ष में माहौल बनाने का काम किया था।  ’मैडम कामा ने जर्मनी के स्टटगार्ट शहर में 22 अगस्त, 1907 में सातवीं अंतरराष्ट्रीय कांग्रेस के दौरान भारतीय तिरंगा फहराया था। उन्होंने इस तिरंगे में भारत के विभिन्न समुदायों को दर्शाया था। उनका तिरंगा आज के तिरंगे जैसा नहीं था।

भीकाजी कामा का जन्म 24 सितंबर, 1861 को मुंबई में एक पारसी परिवार में हुआ था। मैडम कामा के पिता सोराबजी पटेल मशहूर व्यापारी थे। भीकाजी के नौ भाई-बहन थे। उनका शादी 1885 में एक पारसी समाज सुधारक रुस्तमजी कामा से हुई थी।
’उन्होंने अपनी शिक्षा एलेक्जेंड्रा नेटिव गर्ल्स संस्थान में हासिल की थी। वे शुरू से ही कुशाग्र बुद्धि वाली और संवेदनशील थीं और हमेशा ब्रिटिश सरकार के खिलाफ चलने वाली गतिविधियों में शामिल रहती थीं।

’वर्ष 1896 में मुंबई में जब प्लेग फैला तो उन्होंने मरीजों की सेवा की। बाद में वे खुद भी इस बीमारी की चपेट में आ गई थीं। हालांकि इलाज के बाद वे ठीक हो गई थीं, लेकिन उन्हें आराम और बेहतर इलाज के लिए यूरोप जाना पड़ा। 1906 में वे लंदन चली गर्इं। वहां उनकी मुलाकात भारतीय क्रांतिकारी श्यामजी कृष्ण वर्मा, लाला हरदयाल और वीर सावरकर से हुई।
’लंदन में रहते हुए भीकाजी कामा दादाभाई नवरोजी की निजी सचिव भी थीं। दादाभाई नौरोजी ब्रिटिश हाउस आॅफ कॉमन्स का चुनाव लड़ने वाले पहले एशियाई थे। जब भीकाजी हॉलैंड में थीं, उस दौरान उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर क्रांतिकारी रचनाएं छपवार्इं और लोगों तक पहुंचाया।

’वे जब फ्रांस में थी तब ब्रिटिश सरकार ने उनको वापस बुलाने की मांग की थी। पर फ्रांस सरकार ने उस मांग को खारिज कर दिया था। इसके बाद ब्रिटिश सरकार ने उनकी भारतीय संपत्ति जब्त कर ली और भीखाजी कामा के भारत आने पर रोक लगा दी। उनके सहयोगी उन्हें भारतीय क्रांति की माता मानते थे। अंग्रेजों की नजर में वे खतरनाक क्रांतिकारी थीं।
’भीकाजी ने 1905 में विनायक दामोदर सावरकर और श्यामजी कृष्ण वर्मा की मदद से भारत के ध्वज का पहला डिजाइन तैयार किया। भीकाजी ने जो पहला झंडा लहराया था, उसमें देश के विभिन्न धर्मों की भावनाओं और संस्कृति को समेटने की कोशिश की गई थी। उसमें इस्लाम, हिंदुत्व और बौद्ध मत को प्रदर्शित करने के लिए हरा, पीला और लाल रंग इस्तेमाल किया गया था। साथ ही उसमें बीच में देवनागरी लिपि में ‘वंदे मातरम’ लिखा हुआ था।

’भारत में कई स्थानों और सड़कों का नाम भीकाजी कामा के नाम पर रखा गया है। ’26 जनवरी 1962 को उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया गया। भारतीय तटरक्षक सेना में जहाजों के नाम भी उनके नाम पर रखे गए।
’देश को आजाद कराने के लिए सब कुछ कुर्बान कर देने वाली इस महान क्रांतिकारी महिला की मृत्यु 13 अगस्त, 1936 में मुंबई के पारसी जनरल अस्पताल में हुई। उनके मुख से निकले आखिरी शब्द थे- वंदे मातरम!

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