जानें कालाष्टमी को क्यूँ किया जाता है कालभैरव पूजन, जानें क्या है कथा
मासिक कालाष्टमी को रात्रि में पूजन करने की मान्यता होती है। काल भैरव की इस दिन 16 विधियों के साथ पूजन किया जाता है। रात को चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही व्रत पूर्ण किया जाता है। कालाष्टमी के दिन व्रत करने वाले श्रद्धालु भगवान शिव और माता पार्वती की कथा का पाठ करने हैं और भजन कीर्तन श्रद्धा के साथ करते हैं। इस दिन व्रत करने वालों को भैरव बाबा की कथा को सुनना या पढ़ना चाहिए। माना जाता है कि भैरव पूजन से भूत-पिशाच, नकारात्मक शक्तियों और आर्थिक समस्या दूर होती है। भगवान भैरव का वाहन काला कुत्ता माना गया है, इस दिन उसे भोजन करवाना लाभदायक माना जाता है।
नारद पुराण के अनुसार माना जाता है कि कालाष्टमी के दिन कालभैरव और माता दुर्गा के काली रुप की पूजा की जाती है। कालाष्टमी की रात देवी काली की उपासना का महत्व माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार एक समय भगवान विष्णु और ब्रह्म देव में श्रेष्ठता का युद्ध छिड़ गया था और इस समाधन के लिए भगवान शिव योजना का निर्माण करते हैं। उस योजना में शिव भगवान विष्णु को श्रेष्ठ बताते हैं, सभी शिवजी की इस बात को मानते हैं लेकिन ब्रह्म देव नकारते हुए शिवजी का अपमान करते हैं।
भगवान शिव क्रोधित हो जाते हैं और रौद्र रुप धारण कर लेते हैं। उनके इस रुप को देखकर तीनों लोकों में भय फैल जाता है। वह एक कुत्ते पर सवार थे और उनके हाथ में दंड था। हाथ में दंड होने के बाद वो दंडादिपति कहलाए। भैरव ने क्रोध में ब्रह्मा का पांचवा सिर काट दिया। ब्रह्म देव को अपने गलती का अहसास हुआ और उन्होनें माफी मांगी। इसके बाद विवाद समाप्त हुआ। इस विवाद के बाद से ब्रह्म देव के चार सिर बचे और कालभैरव को पापियों को दंड देने वाला माना जाने लगा। जिन लोगों को आर्थिक समस्या होती है या नौकरी और बिजनेस में नुकसान हो रहा होता है उनके लिए ये व्रत लाभकारी माना जाता है।