जय हिंद: सुभाष चंद्र बोस ने नहीं, आइएनए के मुस्लिम मेजर ने दिया था नारा

मध्य प्रदेश सरकार के शिक्षा मंत्री विजय शाह ने सितंबर में स्कूलाें में उपस्थिति दर्ज कराने के लिए ‘जय हिंद’ को अनिवार्य करने की घोषणा की थी। शुरुआत में इसे सिर्फ सतना जिले के स्कूलों के लिए अमल में लाया गया था। बाद में राज्य के सभी 1.22 लाख सरकारी स्कूलों के लिए इसे अनिवार्य कर दिया गया था। ऐसा माना जाता है कि ‘जय हिंद’ को सबसे पहले नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने सैनिकों के लिए व्यवहार में लाया और उसे लोकप्रिय बनाया था। लेकिन, नरेंद्र लूथर ‘लेंगेनडॉट्स ऑफ हैदराबाद’ नामक किताब में नया खुलासा करते हैं। वर्ष 2014 में प्रकाशित किताब में वह लिखते हैं कि ‘जय हिंद’ स्लोगन को व्यवहार में लाने वाला पहला व्यक्ति जैन-उल आबिदीन हसन थे। वह हैदराबाद में तैनात एक कलेक्टर के बेटे थे।

नरेंद्र लिखते हैं कि हसन इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के लिए जर्मनी गए थे। वहां वह सुभाष चंद्र बोस के संपर्क में आए। हसन पढ़ाई-लिखाई बीच में ही छोड़ कर सुभाष चंद्र बोस के साथ हो लिए। वह उनके लिए सचिव और इंटरप्रेटर के तौर पर काम करने लगे। वह बाद में सुभाष चंद्र बोस द्वारा गठित आइएनए में मेजर के तौर पर तैनात हो गए। आजादी के बाद वह भारतीय विदेश सेवा में नियुक्त हुए। हसन ने डेनमार्क में बतौर राजदूत भी अपनी सेवाएं दी थीं। बोस ने आइएनए का गठन धार्मिक आधार पर नहीं किया था। ब्रिटिश इंडियन आर्मी में धर्म के आधार पर गठित बटालियन के जवान धार्मिक आधार पर एक-दूसरे का अभिवादन करते थे। बोस आइएनए में इस प्रथा को नहीं लाना चाहते थे। यहीं से शुरू हुआ था अभिवादन के लिए नए स्लोगन की तलाश।

बोस ने आइएनए के जवानों के लिए अभिवादन के लिए नए स्लोगन गढ़ने की जिम्मेदारी हसन को दी। नेताजी चाहते थे कि स्लोगन अखंड भारत को प्रतिबिंबित करे न कि किसि धर्म या जाति का। हसन ने शुरुआत में ‘हेलो’ का सुझाव दिया था, जिसे बोस ने खारिज कर दिया था। उनके पोते अनवर अली खान बताते हैं कि एक बार हसन जर्मनी के कोनिंग्सब्रक में यूं ही घूम रहे थे। उसी वक्त उन्होंने दो राजपूत जवानों को ‘जय रामजी की’ के साथ एक-दूसरे का अभिवादन करते सुना। इसके बाद उनके मन में ‘जय हिंदुस्तान की’ स्लोगन का विचार आया। बाद में यह ‘जय हिंद’ हो गया। हालांकि, महात्मा गांधी जबरन ‘जय हिंद’ कहलवाने के विरोधी थे। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने आजादी के बाद के अपने ऐतिहासिक भाषण का अंत जय हिंद से किया था। आज यह स्लोगन विजय का प्रतीक बन गया है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *